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Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष के दौरान करें पितृ कवच और स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

Pitru Paksha 2023 ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में पितृ दोष लगने पर जातक को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अतः पितरों का प्रसन्न रहना जरूरी है। पितृ के प्रसन्न रहने पर जातक को सुख समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है। अगर आप भी पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो पितृ पक्ष के दौरान पितृ कवच और स्तोत्र का पाठ करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Mon, 25 Sep 2023 05:44 PM (IST)Updated: Mon, 25 Sep 2023 05:44 PM (IST)
Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष के दौरान करें पितृ कवच और स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Pitru Paksha 2023: सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। इस दौरान पितृ धरती पर आते हैं। अतः पितरों की पूजा की जाती है। इस वर्ष 29 सितंबर से लेकर 14 अक्टूबर तक पितृ पक्ष है। सनातन पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी। अतः पितृ पक्ष का प्रारंभ 29 सितंबर से हो रहा है। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में पितृ दोष लगने पर जातक को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अतः पितरों का प्रसन्न रहना जरूरी है। पितृ के प्रसन्न रहने पर जातक को सुख, समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है। अगर आप भी पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो पितृ पक्ष के दौरान प्रातः काल में पितृ कवच और स्तोत्र का पाठ करें।

यह भी पढ़ें- Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष के प्रथम दिन बन रहे हैं ये अद्भुत संयोग, इस समय करें पितरों की पूजा, सुख-समृद्धि में होगी वृद्धि

पितृ स्तोत्र

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

पितृ कवच

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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