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Shani Kavach: शनिवार को पूजा के समय करें शनि कवच का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

Shani Kavach ज्योतिषियों की मानें तो वर्तमान समय में कुंभ राशि मकर राशि और मीन राशि के जातक साढ़े साती से पीड़ित हैं। वहीं शनि की ढैय्या कर्क और वृश्चिक राशि पर चल रही है। शनि की कुदृष्टि पड़ने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता आ जाती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 16 Jun 2023 10:00 AM (IST)
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Shani Kavach: शनिवार को पूजा के समय करें शनि कवच का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Shani Kavach: सनातन धर्म में शनिवार के दिन शनिदेव की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। शनि देव को न्याय का देवता और कर्मफल दाता भी कहा जाता है। अच्छे कर्म करने वाले को अच्छा फल देते हैं। वहीं, बुरे कर्म करने वाले को कठोर दंड देते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो वर्तमान समय में कुंभ राशि, मकर राशि और मीन राशि के जातक साढ़े साती से पीड़ित हैं। वहीं, शनि की ढैय्या कर्क और वृश्चिक राशि पर चल रही है। शनि की कुदृष्टि पड़ने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता आ जाती है। व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी शनि के अशुभ प्रभावों से परेशान हैं, तो हर शनिवार मंदिर जाकर शनिदेव की पूजा करें। साथ ही शनि कवच का पाठ करें। आइए, शनि कवच का पाठ करें-

श्री शनि कवच

अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः ॥

अनुष्टुप् छन्दः ॥ शनैश्चरो देवता ॥ शीं शक्तिः ॥

शूं कीलकम् ॥ शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ॥

चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः ॥

ब्रह्मोवाच ॥

श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥

ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः ।

नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः ॥

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।

स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः ॥

स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः ।

वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा ॥

नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा ।

ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥

पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।

अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः ॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः ।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।

कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।

कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा ।

द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा ।

जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥

डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '