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मान्यता है कि इसी दिन शिव के वरदान से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है

माहेश्वरी का अर्थ हुआ जिस पर भगवान शिव की कृपा है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Sat, 11 Jun 2016 05:11 PM (IST)
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- महेश जयंती 13 जून विशेष

भगवान शिव की कृपा से ही माहेश्वरी समुदाय ने विशेष पहचान पाई और यह दिन उसी कृपा का स्मरण दिवस है। ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की नवमी को महेश जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव के वरदान से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है। महेश यानी शंकर और वारि यानी समुदाय या वंश। माहेश्वरी का अर्थ हुआ जिस पर भगवान शिव की कृपा है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे।

शिकार के दौरान वे ऋषियों के श्राप से ग्रसित होकर पीड़ा के भागी बने लेकिन भगवान शंकर की कृपा से इस समुदाय ने श्राप से मुक्ति पाई। भगवान शंकर के आशीर्वाद को पाकर ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य या व्यापार को अपना लिया। एक अर्थ में हिंसा का मार्ग त्यागकर अहिंसा और सेवा को अपनाया। आज माहेश्वरी समाज व्यापारिक समुदाय के रूप में अपनी विशेष पहचान रखता है।

महेश जयंती माहेश्वरी समुदाय के लिए विशेष अवसर है जबकि वे अपनी उत्पत्ति का उत्सव मनाते हैं। माहेश्वरी समाज के 72 उपनामों व गोत्र का संबंध भी इसी प्रसंग के साथ जुड़ा है। इस दिन भगवान शंकर और पार्वती की विशेष आराधना की जाती है।

महेश नवमी को यूं तो सभी समाज के लोग मनाते हैं लेकिन उत्पत्ति दिवस होने से माहेश्वरी समाज इसे विशेष रूप में मनाता है। इस दिन नगरों में चल समारोह निकाले जाते हैं। इस चल समारोह के साथ महेश जयंती समाज को एकजुट करने का उत्सव भी बन जाती है।