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संत हनुमानदास ब्रह्मलीन, ये है महान बनने की कहानी

वृंदावन के डेढ़ सौ वर्षीय हनुमानदास ब्रह्मचारी ब्रह्मलीन हो गए। उधर भद्रवन के महंत घनश्याम दास ने भी शरीर छोड़ दिया। इससे उनके अनुयायियों में शोक व्याप्त है। वृंदावन के गोपाल खार गोशाला में उनके शिष्य गोपाल ने बताया कि संत ब्रह्मचारी दो साल से बीमार थे। उनके निधन से संत समाज में शोक व्याप्त हो गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए अनुयायि

By Edited By: Updated: Tue, 26 Nov 2013 12:38 PM (IST)
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मथुरा। वृंदावन के डेढ़ सौ वर्षीय हनुमानदास ब्रह्मचारी ब्रह्मलीन हो गए। उधर भद्रवन के महंत घनश्याम दास ने भी शरीर छोड़ दिया। इससे उनके अनुयायियों में शोक व्याप्त है। वृंदावन के गोपाल खार गोशाला में उनके शिष्य गोपाल ने बताया कि संत ब्रह्मचारी दो साल से बीमार थे। उनके निधन से संत समाज में शोक व्याप्त हो गया।

उनके अंतिम दर्शन के लिए अनुयायियों का तांता लगा रहा। उनकी अंतिम यात्रा में शहर के प्रमुख लोग शामिल हुए। उधर भद्रवन के महंत घन श्याम दास का सोमवार को महाप्रयाण हो गया। संत की इच्छा पर उनकी शव यात्रा बरसाना तक निकाली गई। शवयात्रा में होडल आनंददास, वृंदावन अखाड़ा के महंत ब्रजबिहारी दास, चित्रकूट के संतदास, गोवर्धन कलाधारी से महंत राघवदास, बरसाना से निर्मलानंद टाटम्बरी, नूहं से सीताराम दास, भद्रवन के पुजारी रामकुमारदास, नानकचंद, पूरन, हरदयाल, जुगल किशोर शर्मा, ग्वालियर से रामबाबू मास्टर, कल्लू, हरी पुजारी भी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। बरसाना में उनका अंतिम संस्कार किया गया।

गोलोकवासी बाबा हनुमानदास-

कोई बताता है सवा सौ साल तो किसी का दावा है डेढ़ सौ साल का। वाकये, संस्मरण पर भरोसा करें तो उम्र का ग्राफ 175 वर्ष तक पहुंच जाता है। असलियत तो किसी को पता नहीं और न ही सुबूत हैं, मगर उम्र के आंकड़ों में महान रहे संत हनुमानदास ब्रह्मचारी का सोमवार को महाप्रयाण हो गया। वो मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। लेकिन करीब 12 वर्ष की उम्र से वह वृंदावन के परिक्रमा मार्ग स्थित गोपाल खार में आ गये थे। उम्र के लिहाज से बाबा हनुमानदास कई खिताब के हकदार भी हो सकते हैं। जरूरत है, इनकी ओर शोधकर्ताओं और रिकार्ड बुक्स के लिये ब्योरा एकत्रित करने वालों का ध्यान खींचने की।

बाबा ने समाज कल्याण और गोरक्षा, गोशाला के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं। 'जागरण'ने 10 अगस्त को गोपाल खार क्षेत्र में उनकी कुटिया में बाबा से मुलाकात की। बाबा ने बताया था कि वह प्रतिदिन तीन घंटे भजन करते हैं। भोर के तीन बजे जाग जाते हैं और दैनिक क्रिया के बाद भजन करने में जुट जाते हैं। बाबा के दांत दोबारा उपज आये हैं, लेकिन छोटे-छोटे। भोजन व स्वल्पहार में एक रोटी, चावल, दूध, चाय और फल लेते हैं। लेकिन कम मात्रा में। उस दौरान उनके शरीर में हीमोग्लोविन की मात्रा 6.4 थी, जबकि डब्ल्यूबीसी काउंट 7450 था।

झांसी की रानी ने वीरता दिखाई, तब मैं किशोर था। बकौल बाबा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजी हुकूमत से जब लोहा लिया था, तब मैं किशोर अवस्था में था। उस वीर रानी के किस्से किशोर अवस्था की सबसे बड़ी याद के रूप में हैं।

हनुमानजी व गुरुजी की सेवा का भाव रहा-कुटिया ही उनका भजन स्थल रहा है। जीवनभर मकसद भगवान हनुमानजी और अपने गुरु मथुरादास की सेवा का रहा है। पूरी शिद्दत के साथ तपस्या की और सफल भी रहे।

ये है महान बनने की कहानी-बाबा बचपन में गाय चराते थे। एक दिन गाय चराने के दौरान एक बछड़ा को कोई जानवर ले गया। इसी बात पर पिता ने उनकी पिटाई कर दी और माता ने भी फटकार लगा दी। बालक अवस्था में हनुमानदास घर छोड़कर चल दिये। रास्ते में एक संत मिले, वह उन्हें वृंदावन के गोपाल खार क्षेत्र में छोड़ गये। यहां मथुरादास बाबा ने उन्हें आसरा दिया।

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