Samudra Manthan: जानें, कब हुई मदिरा की उत्पत्ति और कैसे ये सोमरस से है भिन्न?
Samudra Manthan सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में असुरों के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। स्वर्ग नरेश इंद्र भी चिंतित और व्यथित हो उठें। तब सभी ऋषि मुनि और देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी बोले-इसका हल तो जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास है। आप सभी भगवान विष्णु के पास जाएं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 30 Aug 2023 11:39 AM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Samudra Manthan: जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण पवित्र ग्रंथ 'गीता' में अपने परम मित्र अर्जुन से कहते हैं कि मानव शरीर पांच तत्वों और तीन प्रकृतियों से बना है। पांच तत्व भूमि, गगन यानी नभ, वायु, अग्नि और जल हैं। वहीं, तीन प्रकृति सतो, रजो और तमो गुण हैं। ये तीनों गुण धरातल पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति में होते हैं। सतो गुण वाले व्यक्ति सात्विक विचारधारा के होते हैं। ऐसे लोग क्षमावान, दयावान, कर्मवान, शीलवान, गुणवान, सहनशील होते हैं। सतोगुणी लोग भगवान श्रीकृष्ण के शरण में जाते हैं। वहीं, रजोगुणी लोग इच्छा प्राप्ति हेतु देवताओं की शरण में जाते हैं। जबकि, तमोगुणी लोग भूत-प्रेत की उपासना करते हैं। तमोगुणी लोग मांस और मदिरा का सेवन भी करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मदिरा की उत्पत्ति कब हुई और कैसे ये स्वर्ग में मिलने वाले सोमरस से भिन्न है ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
मदिरा की उत्पत्ति कब हुई?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में असुरों के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। स्वर्ग नरेश इंद्र भी चिंतित और व्यथित हो उठें। तब सभी ऋषि मुनि और देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी बोले-इसका हल तो भगवान विष्णु के पास है। आप सभी भगवान विष्णु के पास जाएं। यह सुन सभी ऋषि-मुनि और देवता जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचें।
देवताओं की याचना सुन भगवान विष्णु बोले-आप सभी क्षीर सागर में समुद्र मंथन करें। समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त होगा। अमृत पान करने से आप सभी देवता अमर हो जाएंगे। तब असुर आपको परास्त नहीं कर पाएंगे। हालांकि, एक चीज का ध्यान रखें कि असुर अमृत पान न कर सके। अगर असुर अमृत पान करता है, तो वे अमर हो जाऐंगे। तब असुरों को हराना बेहद मुश्किल होगा। इसमें आपको असुरों की भी मदद लेनी पड़ेगी।
इसके बाद सभी देवता, असुरों के पास गए और उन्हें समुद्र मंथन की जानकारी दी। असुरों को देवताओं का प्रस्ताव पसंद आया। तत्क्षण ही असुर राजी हो गए। इसके बाद वासुकि नाग और मंदार पर्वत की मदद से समुद्र मंथन किया गया। असुरों ने कहा कि पहले ही निर्णय कर लेते हैं कि पहला रत्न कौन लेगा और दूसरा किसको प्राप्त होगा? ऐसा करने से वाद-विवाद नहीं होगा। उस समय देवता एक क्षण के लिए सहम गए। इसके बाद भगवान विष्णु को प्रणाम कर सहमत हो गए। इसमें तय हुआ कि पहला रत्न असुरों को दिया जाएगा। वहीं, दूसरा देवताओं को दिया जाएगा।
नियत समय पर समुद्र मंथन शुरू हुआ। समुद्र मंथन से पहले विष निकला। इससे सभी देवी, देवता और प्राणी मूर्छित हो गए। उस समय देवताओं ने भगवान शिव से याचना की। तब भगवान शिव ने चराचर के कल्याण हेतु विषपान किया। विष के चलते भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। इसके लिए भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है।इसके बाद दोबारा समुद्र मंथन शुरू हुआ। अब कामधेनु गाय निकली। असुरों ने यह कहकर कामधेनु गाय देवताओं को दे दिया कि गाय का हम क्या करेंगे ? इसके बाद समुद्र मंथन से महालक्ष्मी प्रकट हुईं। असुरों और देवताओं ने मां की स्तुति की। समुद्र देवता ने मां लक्ष्मी का कन्यादान किया। उस समय धन की देवी मां लक्ष्मी जगत के पालनहार भगवान विष्णु के बाएं भाग में विराजमान हुईं। इसके बाद ऐरावत निकला, जो देवताओं को प्राप्त हुआ।
तदोउपरांत, उच्चैः श्रवा अश्व प्राप्त हुआ, जो असुरों के पक्ष में गया। हालांकि, वेद स्तुति करने के चलते असुरों ने अश्व लेने से इंकार कर दिया और देवताओं को सौंप दिया। असुर बोले- वेद बोलने वाला घोड़ा मेरे काम का नहीं हो सकता है। ये आप लोग ही रख लें। पुनः समुद्र मंथन शुरू हुआ। इस समय मदिरा निकली। इसे देख असुर प्रसन्न हो गए। तत्क्षण असुरों ने मदिरा पान किया। इसके बाद कुछ समय तक असुर नशे में चूर रहे। मदिरा का सेवन कर असुर बेहद प्रसन्न हुए। जब नशा कम हुआ, तो फिर समुद्र मंथन शुरू हुआ। धार्मिक मान्यता है कि मदिरा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई।