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Sankashti Chaturthi 2024: संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी को ऐसे करें प्रसन्न, हर कामना होगी पूरी

पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन भक्त गणेश जी की कृपा प्राप्ति के लिए सुबह से शाम तक व्रत करते हैं। ऐसे में आप संकष्टी चतुर्थी के इस विशेष अवसर पर गणेश संकटनाशन स्तोत्र के पाठ द्वारा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Wed, 27 Mar 2024 10:37 AM (IST)
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Bhalchandra Sankashti Chaturthi 2024: संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी को ऐसे करें प्रसन्न।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Sankashti Chaturthi 2024: हिंदू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश जी के लिए समर्पित मानी जाती है। जिसमें से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं तथा शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 28 मार्च शाम 06 बजकर 56 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन 29 मार्च को रात 08 बजकर 20 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 मार्च, गुरुवार के दिन किया जाएगा। इस दौरान चंद्रोदय रात 09 बजकर 28 मिनट पर होगा।

पूजा विधि (Ganesh Puja Vidhi)

संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर के मंदिर में एक चौकी पर हरे रंग का कपड़ा बिछाकर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब प्रतिमा के समक्ष दीप जलाएं और गणपित जी को गंगाजल से अभिषेक करें। भगवान गणेश को पुष्प, दूर्वा घास, सिंदूर आदि अर्पित करें अर्पित करें। पूजा के दौरान गणेश जी को मोदक या लड्डुओं का भोग भी लगाएं। साथ ही गणपति बप्पा की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए गणेश संकटनाशन स्तोत्र का भी पाठ करें।

गणेश संकटनाशन स्तोत्र

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयंकृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रंचतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमंच षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णतथाष्टकम्।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तुविनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तुगजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभतेविद्यांधनार्थी लभतेधनम्।

पुत्रार्थी लभतेपुत्रान्मोक्षार्थी लभतेगतिम्।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलंलभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभतेनात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वागणेशस्य प्रसादत:।।8।। ॥

इति श्रीनारदपुराणेसंकष्टनाशनंगणेशस्तोत्रंसम्पूर्णम्॥

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'