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Sanskrit Shlokas: प्रेरणा देने का कार्य करते हैं संस्कृत के ये श्लोक, जानिए हिंदी अर्थ

संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा में शामिल है। यह भाषा जितनी प्राचीन है उनती ही वैज्ञानिक भी है। संस्कृत में ऐसे कई श्लोक बताए गए हैं जो व्यक्ति को जीवन में सही और गलती के बीच का अंतर समझाने का कार्य करते हैं। ऐसे में आइए पढ़ते हैं संस्कृत के कुछ प्रेरणादायक श्लोक जिन्हें हर व्यक्ति को जरूर जानना चाहिए।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Wed, 03 Jul 2024 06:34 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jul 2024 06:34 PM (IST)
Sanskrit Shlokas जीवन का सही अर्थ बतलाते हैं संस्कृत के ये श्लोक।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। किसी कार्य की सफलता या असफलता, हमारे द्वारा किए गए प्रयासों और मेहनत पर ही निर्भर करती है। संस्कृत भाषा में कुछ ऐसे ही श्लोक बताए गए हैं, जो व्यक्ति को मेहनत करने और सफलता के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करते हैं। तो चलिए हिंदी अर्थ सहित जानते हैं वह श्लोक।

संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

“उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।”

इस श्लोक का अर्थ है कि सिर्फ इच्छा करने मात्र से किसी व्यक्ति के काम पूरे नहीं होते, बल्कि इसके लिए मेहनत भी करनी पड़ती है। जिस प्रकार एक सोए हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसे स्वयं ही अपने भोजन के लिए परिश्रम करना पड़ता है।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

यह भगवत गीता का सबसे लोकप्रिय श्लोक है। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! (अर्जुन) केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में नहीं। इसलिए कर्म करते रहो और फल की चिंता मत करों।

“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥”

इस श्लोक का अर्थ है कि उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। भले ही रास्ते बहुत कठिन और अत्यन्त दुर्गम हों। लेकिन विद्वानों का कहना हैं कि कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता की जा सकती है।

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न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।

उपरोक्त श्लोक के अनुसार, विद्या एक ऐसा धन जिसे चुराया नहीं जा सकता और न ही इस धन को कोई छीन सकता है। इस धन का भाइयों के बीच बंटवारा नहीं किया जा सकता। विद्या एक ऐसा धन है जिसे संभलना बहुत आसार है और यह खर्च करने पर और अधिक बढ़ता है। इसलिए विद्या को एक सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


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