Sanyas Lene ke Niyam: कैसे लिया जाता है संन्यास? करना पड़ता है इन कठिन नियमों का पालन
Sanyas Lene ke Niyam सन्यासी बनने के लिए एक व्यक्ति को सभी प्रकार की मोह-माया का त्याग करना पड़ता है। ईश्वर की आराधना में जीवन समर्पित करना होता है। स्वामी विवेकानंद ने संन्यास को जीवन की सबसे ऊँची अवस्था बताया है। आइए जानते हैं कि सन्यासी कैसे बना जाता हैं और संन्यासी बनने के लिए किन-किन नियमों का पालन करना पड़ता है।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 22 Jul 2023 05:10 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म। Sanyas Lene ke Niyam: संन्यासी बनना कोई आसान प्रक्रिया नहीं है। इसके लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। कोई व्यक्ति जब चेतना के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचता है तब वह संन्यासी कहलाता है। संन्यास का अर्थ है सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का स्मरण करते रहना। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा गया है।
कितने प्रकार का होता है संन्यास
सनातन धर्म में जीवन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है बताई गई हैं जिनमें से संन्यास अंतिम अवस्था है। ये चार अवस्थाएं हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। हिंदू धर्म में दो तरह के संन्यास होते हैं- विद्वत संन्यास और विद्विशा संन्यास
क्या होता है विद्वत संन्यास
विद्वत संन्यास में व्यक्ति को जब लगता है कि अब जीवन में कुछ भी बाकी नहीं है तब वह व्यक्ति विद्या सन्यास की ओर अग्रसर होता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले व्यक्ति गुरु की खोज करता है सही गुरु के मिल जाने पर उनके सामने संन्यास लेने की इच्छा व्यक्त करता है। इसके बाद गुरु व्यक्ति को संन्यास की दीक्षा देते हैं जिसमें वह विशेष व्रतों मंत्रों और साधना का पालन करता है और प्रतिज्ञा करता है।गुरु व्यक्ति को एक नया आध्यात्मिक नाम देते हैं जिसे वह अपना आध्यात्मिक भाव दिखाने के लिए उपयोग करता है। एक बार सन्यासी दीक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति सन्यासी जीवन की शुरुआत करता है। इसके बाद व्यक्ति संयम, त्याग और ध्यान से आध्यात्मिक आदर्शों का पालन करता है।
विद्विशा संन्यास का अर्थ
दूसरे प्रकार का संन्यास विद्विशा संन्यास है। इसका उद्देश्य जीवन के परम तत्व को प्राप्त करना होता है। व्यक्ति के मन में यह निश्चित हो जाता है, कि यह संसार दुखों का घर है। इसलिए इससे सुख प्राप्त करने में उसकी कोई रुचि नहीं होती। सीधे शब्दों में कहें तो वह मोह-माया से दूर हो जाता है। वह संन्यास लेकर अपना शेष जीवन परम तत्व की अनुभूति प्राप्त करने में लगा देता है।संन्यास लेने के नियम
संन्यास लेने के लिए व्यक्ति को परिवार का त्याग, एक समय भोजन करना, ब्रह्मा चर्य का पालन करना, जमीन पर सोना, मांग कर भोजन करना, भीड़-भाड़ से अलग रहना जैसे कई तरह के कठिन कार्य को करना पड़ता है। संन्यासी को हमेशा असुरक्षा में रहने को कहा गया है। साथ ही सन्यासी किसी एक जगह पर ज्यादा दिन नहीं ठहर सकते।डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'