Sawan 2024: सावन में जरूर करें इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, सभी मनोकामनाओं की होगी पूर्ति
सावन का महीना बेहद पावन माना जाता है। यह हिंदू पंचांग का पांचवां महीना है। यह महीना भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस माह के दौरान भोलेनाथ की पूजा करने से हर तरह की मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती हैं। साथ ही इस दौरान शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का भी विशेष महत्व है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन का महीना बेहद शुभ माना जाता है, इस दौरान भगवान शिव की पूजा का महत्व बढ़ जाता है। शास्त्रों में यह महीना भगवान शिव की विशेष कृपा पाने के लिए बताया गया है। कहते हैं कि सावन में भोले बाबा प्रसन्न मुद्रा में होते हैं, जो मौसम को देखते हुए भी अंदाजा लगाया जा सकता है।
वहीं, इस तिथि पर शिव जी की प्रतिष्ठित ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirlinga Darshan In Sawan Month) के दर्शन किए जाएं, तो इससे अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति के सभी दुखों का नाश होता है, तो आइए भगवान शिव को समर्पित इन प्रतिष्ठित मंदिरों की अनूठी विशेषताओं और महिमा को जाते हैं -
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग को हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे प्रतिष्ठित और पवित्र स्थल माना जाता है, जो भक्तों के दिलों में सर्वोपरि स्थान रखता है। इस धाम की विशेषता यहां स्थापित शिवलिंग के तीन मुख हैं, जो त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, निर्माता, विष्णु, संरक्षक, और महेश्वर, संहारक का प्रतीक है।
ऐसा माना जाता है कि त्र्यंबकेश्वर की यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति मिलती है। यहां भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। बता दें, यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यंबक गांव में स्थित है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, पुणे
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से 110 किलोमीटर दूर स्थित है। इस धाम को क्षेत्रीय लोग मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जानते हैं। शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह छटा ज्योतिर्लिंग माना गया है। इस धाम में भगवान शिव की पूजा अर्धनारीश्वर के रूप में की जाती है, जो एक अद्वितीय अभिव्यक्ति का प्रतीक हैं। इसके साथ ही यह पवित्र धाम स्त्री और पुरुष के ऊर्जा के सामंजस्य का भी प्रतीक है।
भीमा नदी की वजह से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह पवित्र नदी भगवान शिव का पसीना है, जो राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय पाने के बाद बहा था।