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Sawan Kanwar Yatra 2022: सावन में कांवड़ यात्रा की कैसे हुई शुरुआत, जानिए पौराणिक कथा

Sawan Kanwar Yatra 2022 कांवड़ यात्रा सदियों से चली आ रही है एक परंपरा है जिसे शिव भक्त बड़ी ही श्रद्धा के साथ करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा के शुरुआत की पौराणिक कथाएं

By Shivani SinghEdited By: Updated: Thu, 14 Jul 2022 10:53 AM (IST)
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Sawan Kanwar Yatra 2022: सावन में कांवड़ यात्रा की कैसे हुई शुरुआत, जानिए पौराणिक कथा

नई दिल्ली,  Kanwar Yatra 2022: सावन का महीना शुरू हो चुका है। इस माह में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ कई भक्तगण केसरिया रंग के वस्त्र पहनकर सावन की शुरुआत में कांवड़ यात्रा में निकलते हैं और गंगा नदी का पवित्र जल कांवड़ में भरकर लाते हैं और सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ यात्रा की परंपरा दशकों से चली आ रही है। इस यात्रा में हर वर्ग के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर सबसे पहला कांवड़ यात्री कौन था। वेद शास्त्रों में कांवड़ यात्रा को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। इन कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम, लंकापति रावण, परशुराम या फिर श्रवण कुमार को कांवड़ यात्रा शुरू करने वाला माना जाता है। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा शुरू करने के पीछे की पौराणिक कथाएं।

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कांवड़ यात्रा शुरू होने की पहली कथा

कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवान परशुराम  ने पहला कांवड़ियां थे। माना जाता है कि भगवान परशुराम ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल ले जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था।  इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

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कांवड़ यात्रा शुरू होने की दूसरी कथा

कुछ मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार ने त्रेता युग में की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, आज्ञाकारी पुत्र श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा व्यक्त की। ऐसे में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कंधे पर कांवड़ में बिठा कर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान करवाया। लौटते समय अपने साथ गंगा जल लेकर आए जिसे उन्होंने भगवान शिव का अभिषेक किया। माना जाता है कि इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

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कांवड़ यात्रा शुरू होने की तीसरी कथा

कांवड़ यात्रा का शुरू होने का संबंध लंकापति रावण से भी जोड़ा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, रावण भगवान शिव का परम भक्त था। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने से भगवान शिव का गला जलने लगा तब देवी देवताओं ने तो जलाभिषेक किया था। इसके अलावा शिव जी ने अपने परम भक्त रावण का स्मरण किया। ऐसे में रावण ने कांवड़ से जल लेकर भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव जी को विष के प्रभाव से मुक्ति मिली। माना जाता है कि इसके बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

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Pic Credit- instagram/newsupdate080

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