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Sawan Shivratri 2020: शिवरात्रि पर आपने रखा है भोलेनाथ का व्रत तो पढ़ें यह कथा

Sawan Shivratri 2020 शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का व्रत और उनकी आराधना करते हैं। शिवभक्त उनका जलाभिषेक करते हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 19 Jul 2020 11:29 AM (IST)
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Sawan Shivratri 2020: शिवरात्रि पर आपने रखा है भोलेनाथ का व्रत तो पढ़ें यह कथा
Sawan Shivratri 2020: शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का व्रत और उनकी आराधना करते हैं। शिवभक्त उनका जलाभिषेक करते हैं। अगर आप भी शिवरात्रि का व्रत कर रहे हैं तो आपको शिवरात्रि की पूजा के साथ-साथ व्रत कथा भी पढ़नी चाहिए। यहां हम आपको शिवरात्रि की व्रत कथा की जानकारी दे रहे हैं।

शिवरात्रि व्रत कथा:

शिव पुराण के अनुसार, एक समय में चित्रभानु नाम का एक शिकारी का था। वो शिकार कर अपने घर चलाता था। शिकारी के ऊपर साहूकार का काफी कर्ज था। वह कर्ज नहीं चुका पा रहा था। इसी के चलते साहूकार ने उसे बंदी बना लिया था। इस दिन शिवरात्रि थी। उसने दिन-भर शिव का स्मरण किया और उपवास किया। ऐसे ही पूरा दिन गुजर गया। शाम को साहूकार ने चित्रभानु को एक दिन का समय दिया कर्जा चुकाने के लिए और उसे छोड़ दिया।

कर्जा चुकाने के लिए चित्रभानु पूरा दिन बिना कुछ खाए-पिए जंगल में शिकार ढूंढने लगा। ऐसे ही शाम निकल गई और रात हो गई। इसके बाद वो रात बीतने के इंतजार में बेल के पेड़ पर चढ़ गया। इसी पेड़ के नीचे शिवलिंग था। बिना जाने शिकारी बेलपत्र तोड़कर नीचे की तरफ गिरा रहा था जो कि संयोगवश शिवलिंग पर गिर रहे थे। इससे उसका व्रत पूरा हो गया।

इसके बाद चित्रभानु को तालाब के किनारे एक गर्भिणी हिरणी दिखाई दी जो पानी पीने के लिए आई थी। उसका शिकार करने के लिए उसने धनुष-बाण निकाला। उस हिरणी ने चित्रभानु का देख लिया। इस पर उसने शिकारी से कहा कि उसके प्रसव का समय है। तुम दो जीव की हत्या करोगे। यह ठीक नहीं है। हिरणी ने शिकारी से वादा किया जब उसका बच्चा इस दुनिया में आ जाएगा तब वो खुद आएगी। तब वह उसका शिकार कर सकता है। लेकिन अभी उसे जाने दे। शिकारी ने उसकी बात मान ली और जाने दिया। इसके बाद प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करते समय कुछ शिवलिंग पर कुछ और बेलपत्र गिर गए। ऐसे में चित्रभानु से अनजाने में शिव की प्रथम पहर की पूजा भी हो गई।

कुछ समय बीता। शिकारी को एक और हिरणी दिखी जो वहां से जा रही थी। उसे देखकर शिकारी बहुत खुश हुआ और शिकार करने के लिए तैयार हो गया। हिरणी ने उससे निवेदन किया कि वो कुछ ही देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई है। मैं अपने प्रिय को ढूंढ रही हूं। मैं एक कामातुर विरहिणी हूं। जैसे ही मुझे मेरा पति मिल जाएगा वैसे ही मैं आ जाऊंगी। यह सुनकर शिकारी ने उसे जाने दिया। लेकिन वो बेहद चिंतित था। रात का आखिरी पहर बीतने ही वाला था। इस बार भी चित्रभानु से बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। इससे दूसरे पहर की पूजा भी हो गई।

इसके बाद उसे एक और हिरणी दिखी वो भी वहीं से जा रही थी। उसने उस हिरणी के शिकार का भी निर्णय लिया। उसने शिकारी से कहा कि मेरे बच्चे मेरे साथ हैं। मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कार आती हूं। इस समय मुझे जाने दो। शिकारी ने कहा कि वो इससे पहले भी दो हिरणियों को छोड़कर देख चुका है। वह इस बार इस हिरणी को नहीं छोड़ेगा। इस पर हिरणी ने कहा कि वो उसका विश्वास करें। मैं लौटने की प्रतिज्ञा लेती हूं। इन सब में शिकारी की शिवरात्री की पूजा हो चुकी थी और सुबह भी हो चुकी थी। उपवास की पूजा भी हो गई थी। अब शिकारी को एक हिरण दिखा। उसने निश्चय किया कि वो उसका शिकार जरूर करेगा।

चित्रभानु ने प्रत्यंचा चढ़ा ली। इस पर हिरण ने कहा कि अगर उससे पहले आई तीन हिरणियों और उनके बच्चों का शिकार उसने किया हो तो उसका भी शिकार कर ले जिससे उसे उनके वियोग में दु:खी न होना पड़े। लेकिन अगर उन्हें जीवनदान दिया है तो उसे भी छोड़ दे। जब वो उन सभी से मिल लेगा तो वो आ जाएगा। यह सुनकर शिकारी ने उस हिरण को रातभर का घटनाक्रम बताया। तब हिरण ने कहा कि वो तीनों हिरणियों उसी की पत्नी हैं। हिरण ने शिकारी से कहा कि जिस तरह से तीनों हिरणियां प्रतिज्ञाबद्ध होकर यहां से गई हैं। अगर उसकी मृत्यु हो जाती है तो वो धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। हिरण ने कहा कि जिस तरह उसने विश्वास कर हिरणियों को जाने दिया उसी तरह से उसे भी जाने दे। वह जल्दी ही पूरे परिवार के साथ शिकारी के सामने हाजिर हो जाएगा।

चित्रभानु ने उस पर भी विश्वास किया और जाने दिया। उसका मन निर्मल हो चुका था क्योंकि वो शिवरात्रि का व्रत पूरा कर चुका था। उसके अंदर भक्ति की भावना आ चुकी थी। कुछ ही समय बाद वो हिरण अपने परिवार के साथ शिकारी के सामने हाजिर हो गया। उनकी सत्यता, सात्विकता एवं प्रेम भावना देखकर शिकारी को बेहद आत्मग्लानि हुई। इस भाव में उसने जीवो को जीवनदान दे दिया। व्रत पूरा करने से ​चित्रभानु को मोक्ष मिल गया। उसकी मृत्य के बाद उस शिकारी को शिवगण अपने साथ शिवलोक ले गए।