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Shani Dev Puja: इस स्तुति के साथ करें भगवान शनि की आरती, पूरी होगी हर अधूरी मुराद

Shani Dev Puja भगवान शनि की पूजा के लिए शनिवार का दिन समर्पित है। इस दिन अगर कोई व्यक्ति शनि देव की पूजा विधि अनुसार करता है तो भगवान शनि की कृपा उसके सदैव बनी रहती है। ऐसे में अगर आप साढ़ेसाती या ढैय्या के कष्टकारी प्रभाव से परेशान हैं तो आपको शनि स्तुति का पाठ अवश्य करना चाहिए जो इस प्रकार है-

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Sat, 11 Nov 2023 07:00 AM (IST)
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Shani Dev Puja: भगवान शनि की पूजा

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Shani Dev Puja: भगवान शनि को लोग न्याय के देवता के नाम से भी जानते हैं। रवि पुत्र की पूजा के लिए शनिवार का दिन समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर इस दिन शनि देव की पूजा विधि अनुसार, की जाए तो वो प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इसके अलावा अगर आपकी कुंडली में शनि की दशा ठीक नहीं है, तो आपको यहां दिए गए 'दशरथकृत शनि स्तोत्र' का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही पूजा का समापन शनिदेव की आरती से करना चाहिए।

॥दशरथ उवाच॥

''प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥

रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।

सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥

याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।

एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।

पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत'' ॥

॥दशरथकृत शनि स्तोत्र:॥

''नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥॥

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:'' ॥॥

॥दशरथ उवाच॥

''प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।

अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित्'' ॥

॥भगवान शनि की आरती॥

''जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥

जय जय श्री शनि देव....

श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

जय जय श्री शनि देव....

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

जय जय श्री शनि देव....

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

जय जय श्री शनि देव....

जय जय श्री शनि देव....

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

जय जय श्री शनि देव''....

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