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Shani Jayanti 2024: शनि जयंती पर जरूर करें इस कवच का पाठ, आर्थिक मुश्किलें होंगी दूर

शनि जयंती (Shani Jayanti 2024) का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। ज्योतिष के अनुसार भगवान शनि को न्याय का देवता माना गया है। ऐसा माना जाता है कि वे कर्मों के आधार पर फल देते हैं। साथ ही अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। इस बार शनि जयंती 6 जून को मनाई जाएगी। इसके अलावा इस दिन शनि कवच का पाठ भी बेहद शुभ माना गया है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 25 May 2024 01:53 PM (IST)
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Shani Jayanti 2024: शनि कवच का पाठ -
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Jayanti 2024: हिंदू धर्म में शनि जयंती का पर्व बहुत शुभ माना गया है। यह हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस साल यह 6 जून, दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। यह तिथि शनिदेव की पूजा के लिए समर्पित है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शनि की पूजा करने से आर्थिक मुश्किलें दूर होती हैं। साथ ही अशुभ ग्रहों का प्रभाव जीवन से समाप्त होता है, इस दिन शनि कवच का पाठ भी बेहद शुभ माना गया है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

''शनि कवच''

अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

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