Shani Trayodashi 2024: शनि त्रयोदशी के व्रत से साढ़ेसाती और शनि ढैय्या का प्रभाव होगा कम, जानिए इसके लाभ और पूजा मुहूर्त
सनातन धर्म में शनि त्रयोदशी का व्रत बेहद शुभ माना गया है क्योंकि यह शनिवार को पड़ता है और इस पर शनि देव का प्रभाव होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह माह में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आता है। इस बार यह कृष्ण पक्ष के दौरान मनाया जाएगा। यह दिन भगवान शंकर माता पार्वती और भगवान शनि की पूजा के लिए समर्पित है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Trayodashi 2024: शनि त्रयोदशी का हिंदुओं के बीच बड़ा धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है। इस दिन को शनि प्रदोष के नाम से भी जाना जाता है, जो चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाएगा। इस माह यह व्रत 6 अप्रैल, 2024 दिन शनिवार को रखा जाएगा। शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को शनि त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन का उपवास करने से शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या का प्रभाव कुंडली से कम होता है। साथ ही भोलेनाथ की कृपा मिलती है।
शनि त्रयोदशी तिथि और पूजा मुहूर्त
- त्रयोदशी तिथि की शुरुआत - 6 अप्रैल, 2024 - 10 बजकर 19 मिनट से
- त्रयोदशी तिथि का समापन - 7 अप्रैल, 2024 - 06 बजकर 53 मिनट तक।
- पूजा का समय - 6 अप्रैल, 2024 - शाम 06 बजकर 02 मिनट से रात्रि 08 बजकर 21 मिनट तक।
शनि त्रयोदशी व्रत के लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रयोदशी का व्रत करने से कई प्रकार के शुभ फल प्राप्त होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो साधक यह व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं उन्हें मानसिक अशांति, चंद्र दोष, नौकरी में पदोन्नति, दीर्घायु, शनि की कृपा मिलती है। इसके साथ ही भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और जिन लोगों को संतान नहीं है उन्हें संतान का वरदान देते हैं। ऐसे में यह उपवास सभी प्रकार की कामना को पूर्ण करने वाला माना गया है।
शनि त्रयोदशी व्रत पूजा विधि
- साधक सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और पूजा कक्ष को साफ करें।
- फिर शनि त्रयोदशी व्रत का संकल्प लें।
- एक वेदी पर भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
- पंचामृत से स्नान करवाएं।
- सफेद चंदन, कुमकुम का तिलक लगाएं।
- देसी घी का दीपक जलाएं।
- पूजा में बेलपत्र अवश्य शामिल करें, क्योंकि यह शिव जी को अति प्रिय है।
- फल, मिठाई और खीर का भोग लगाएं।
- शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
- प्रदोष व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
- अंत में आरती से पूजा को समाप्त करें।
- प्रदोष पूजा हमेशा शाम के समय की जाती है, इसलिए शाम के समय पूजा जरूर करें।
- पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं और भगवान शनिदेव का आशीर्वाद लें।
- पूजा समाप्त करने के बाद सात्विक भोजन से अपना व्रत खोलें।
- पूजा के समय इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुंह उत्तर-पूर्व दिशा की ओर हो।
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