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Shani Dev: शनि दोष से बचने के लिए ऐसे करें शनिवार के दिन पूजा, जल्द मिलेगी राहत

शनिवार का दिन भगवान शनि की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र दिन जो साधक छाया पुत्र की पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें कभी शनि प्रकोप का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे में शनिवार के व्रत का पालन अवश्य करें। इसके साथ ही शनि वज्र पंजर कवच का पाठ करें जो यहां पर दिया गया है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 13 Jul 2024 07:00 AM (IST)
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Shani Dev:शनि वज्र पंजर कवच का पाठ -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को उग्र ग्रहों की सूची में शामिल किया गया है। शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस शुभ दिन पर जो साधक छाया पुत्र की आराधना करते हैं और उनके लिए व्रत रखते हैं। उन्हें उनकी (Shani Dev) पूरी कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही कुंडली से शनि का बुरा प्रभाव भी कम होता है।

ऐसे में जो जातक शनि कृपा चाहते हैं, वे शनिवार की शाम को पीपल के वृक्ष के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर 'शनि वज्र पंजर कवच' का पाठ करें। अंत में आरती से पूजा को समाप्त करें।

।। शनि वज्र पंजर कवच।।

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।

चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥

शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥

ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः ।

नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः ॥

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः ।

वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥

नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।

ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥

पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ॥

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥

व्यय-जन्म-द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।

कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।

द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।

जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥

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अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।