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Shardiya Navratri 2022: रोजाना दुर्गा सप्तशती पाठ करने का नहीं है समय, तो देवी मां को प्रसन्न करने के लिए करें ये पाठ

Shardiya Navratri 2022 नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। नौ दिनों के नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ अगर नहीं कर पा रहे हैं तो लघु दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं। इससे भी लाभ मिलेगा।

By Shivani SinghEdited By: Updated: Mon, 26 Sep 2022 11:42 AM (IST)
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Shardiya Navratri 2022: श्री मार्कण्डेय प्रोक्त लघु दुर्गा सप्तशती
नई दिल्ली, Laghu Durga Saptashati Path: शारदीय नवरात्र का आरंभ हो चुका है। नौ दिनों तक पड़ने वाले नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा अर्चना की जाएगी। मां को प्रसन्न करने के लिए भक्तगढ़ विभिन्न तरह के उपाय, मंत्र आदि करते हैं। इसके साथ ही कई भक्त नौ दिनों तक व्रत रखने के साथ कलश स्थापना की जाती है। माना जाता है कि कलश स्थआपना करने वाले व्यक्ति को रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए। लेकिन कम समय के कारण दुर्गा सप्तशती का पाठ करना काफी मुश्किल है। ऐसे में आप चाहे तो लघु दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं। इससे भी पूरा लाभ मिलता है।

Shardiya Navratri 2022: शारदीय नवरात्र पर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय न करें ये गलतियां, वरना नहीं मिलेगा पूजा का फल

दुर्गा सप्तशती में पूरे 13 अध्याय है। जिसे चीन चरित्रों में बांटा गया है। हर एक अध्याय में मां दुर्गा के विभिन्न महिमा का विस्तार से विवरण दिया गया है। दुर्गा सप्तशती का प्रथम चरित्र में मधु कैटभ वध कथा, मध्यम में महिषासुर का संहार और उत्तर चरित्र में शुम्भ-निशुम्भ वध और सुरथ एवं वैश्य देवी मां से मिले वरदान का विवरण है। वहीं लघु दुर्गा सप्तशती को श्री मार्कण्डेय द्वारा लिख गया है। इस पाठ को रोजाना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती हैष

श्री मार्कण्डेय प्रोक्त लघु दुर्गा सप्तशती

ॐ वींवींवीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता,

स्वानंदेमंदरुपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम् ।

हंसः सोहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे,

ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ।। १ ।।

ॐ ह्रीं-कारं चोच्चरंती ममहरतु भयं चर्ममुंडे प्रचंडे,

खांखांखां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररुपे स्वरुपे ।

हुंहुंहुं-कार-नादे गगन-भुवि तथा व्यापिनी व्योमरुपे,

हंहंहं-कारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्रि ।। २ ।।

ऐं लोके कीर्तयंती मम हरतु भयं चंडरुपे नमस्ते,

घ्रां घ्रां घ्रां घोररुपे घघघघघटिते घर्घरे घोररावे ।

निर्मांसे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेत्रे त्रिनेत्रे,

हस्ताब्जे शूलमुंडे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते ।। ३ ।।

क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले,

मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारि गुह्ये ।

तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने,

ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते ।। ४ ।।

ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरुपेण चक्रे,

त्रिःशक्त्या युक्तवर्णादिककरनमिते दादिवंपूर्णवर्णे ।

ह्रीं-स्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशितैस्तास्तुपत्रे

स्वच्छंदं कष्टनाशे सुरवरवपुषे गुह्यमुंडे नमस्ते ।। ५ ।।

ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोरतुंडे घघघघघघघे घर्घरान्यांघ्रिघोषे,

ह्रीं क्रीं द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते सर्वबोधप्रधाने ।

द्रीं तीर्थे द्रीं तज्येष्ठ जुगजुगजजुगे म्लेच्छदे कालमुंडे,

सर्वांगे रक्तघोरामथनकरवरे वज्रदंडे नमस्ते ।। ६ ।।

ॐ क्रां क्रीं क्रूं वामभित्ते गगनगडगडे गुह्ययोन्याहिमुंडे,

वज्रांगे वज्रहस्ते सुरपतिवरदे मत्तमातंगरुढे ।

सूतेजे शुद्धदेहे ललललललिते छेदिते पाशजाले,

कुंडल्याकाररुपे वृषवृषभहरे ऐंद्रि मातर्नमस्ते ।। ७ ।।

ॐ हुंहुंहुंकारनादे कषकषवसिनी मांसि वैतालहस्ते,

सुंसिद्धर्षैः सुसिद्धिर्ढढढढढढढः सर्वभक्षी प्रचंडी ।

जूं सः सौं शांतिकर्मे मृतमृतनिगडे निःसमे सीसमुद्रे,

देवि त्वं साधकानां भवभयहरणे भद्रकाली नमस्ते ।। ८ ।।

ॐ देवि त्वं तुर्यहस्ते करधृतपरिघे त्वं वराहस्वरुपे,

त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेंद्री ।

ऐं ह्रीं ह्रीं कारभूते अतलतलतले भूतले स्वर्गमार्गे,

पाताले शैलभृंगे हरिहरभुवने सिद्धिचंडी नमस्ते ।। ९ ।।

हंसि त्वं शौंडदुःखं शमितभवभये सर्वविघ्नांतकार्ये,

गांगींगूंगैंषडंगे गगनगटितटे सिद्धिदे सिद्धिसाध्ये ।

क्रूं क्रूं मुद्रागजांशो गसपवनगते त्र्यक्षरे वै कराले,

ॐ हीं हूं गां गणेशी गजमुखजननी त्वं गणेशी नमस्ते ।। १० ।।

।। इति मार्कण्डेय कृत लघु-सप्तशती दुर्गा स्तोत्रं ।।

Pic Credit- Freepik

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