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Shardiya Navratri 2023: महाअष्टमी पर खोइछा भरकर की जाती है माता की विदाई, जानें महत्व और विधि

Sharad Navratri 2023 हिंदू धर्म में नवरात्र की अवधि का विशेष महत्व है। इस साल 15 अक्टूबर रविवार के दिन से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में 22 अक्टूबर को महाष्टमी का व्रत किया जाएगा। इस दिन मां दुर्गा के लिए खोइछा भरने का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं महाअष्टमी पर मां दुर्गा को खोइछा भरने का महत्व और विधि।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 21 Oct 2023 12:11 PM (IST)
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Maha Ashtami 2023 महाअष्टमी का महत्व।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Maha Ashtami Vrat 2023: नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र की अष्टमी तिथि मां महागौरी की पूजा के लिए समर्पित है। इसे महाष्टमी या दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाओं के द्वारा मां दुर्गा को खोइछा भरने की परंपरा है। ऐसा करने से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

मां महागौरी के लिए समर्पित है अष्टमी तिथि

मां दुर्गा की आराधना के लिए समर्पित नौ रातों के समूह को नवरात्र कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अष्टमी तिथि पर ही अुसरों का संहार करने के लिए देवी दुर्गा प्रगट हुई थीं। यही कारण है कि नवरात्र की अष्टमी तिथि एक विशेष महत्व रखती है। नवरात्र की अष्टमी तिथि पर मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी के स्वरूप की पूजा-अर्चना का विधान है।

खोइछा भरने का महत्व

महाष्टमी के दिन महिलाएं विधि-विधान पूर्वक मां दुर्गा को खोइछा भरती हैं। ऐसी मान्यता है कि मां का खोईचा भरने से सुख समृद्धि का घर में वास होता है। दरअसल बिहार, झारखंड और यूपी आदि राज्यों में बेटी की विदाई के दौरान खोइछा भरने की रस्म की जाती है। जिसमें शादीशुदा बेटियां को मायके से ससुराल जाते समय यानी उनकी विदाई के उनकी मां या भाभी के द्वारा कुछ सामान दिया जाता है जैसे - धान या चावल, हल्दी, सिक्का, फूल आदि दिया जाता है जिसे खोइछा कहते हैं।

खोइछा भरने की विधि

मनोकामनाओं की पूर्ति होने पर महिलाओं द्वारा खोईचा भरा जाता है, जिसमें पान, सुपारी, मिठाई, चावल, हल्दी, अक्षत आदि शामिल होते हैं। इस दिन माता रानी का सोलह श्रृंगार कर महिलाएं मां का खोइछा भरती हैं। इसके बाद मां दुर्गा की विधिवत रूप से विदाई की जाती है। इस दौरान महिलाएं एक चुनरी में श्रृंगार का सामान बांध कर माता को अर्पित करती हैं।

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