Shardiya Navratri 2023: मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें पूजा, बनी रहेगी सुख-समृद्धि
Day 3 Maa Chandraghanta नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान है जो देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) अपने माथे पर अर्ध-चंद्रमा के आकार की घंटी के लिए जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि मां अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क।Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्र हर देवी भक्तों के लिए बेहद खास होता है। इस पर्व को नौ दिनों तक मनाया जाता है, जो देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों को समर्पित है। नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान है, जो देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) अपने माथे पर अर्ध-चंद्रमा के आकार की घंटी के लिए जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि मां अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा की उपासना तीसरे दिन की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां इस संसार में न्याय और अनुशासन स्थापित करती हैं। मां चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। भगवान शिव से विवाह करने के बाद, देवी ने अपने माथे को अर्धचंद्र से सजाना शुरू कर दिया।
इसीलिए देवी पार्वती को मां चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।मां शेर पर सवार हैं, जो धर्म का प्रतीक है और उनके शरीर का रंग चमकीला सुनहरा है। मां अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।
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मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
- साधक सुबह जल्दी उठकर नहाएं और साफ कपड़े पहनें।
- देसी घी का दीया जलाएं और मां को फूल की माला अर्पित करें।
- सिन्दूर या कुमकुम लगाएं।
- श्रृंगार का सामान चढ़ाएं।
- मिठाई का भोग अर्पित करें।
- दुर्गा सप्तशती पाठ या फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- शाम के समय मां की आरती करें।
- सात्विक भोजन से व्रत खोलें।
मां चंद्रघंटा का पूजन मंत्र
''वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥''
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