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Sheetala Saptami 2024: शीतला सप्तमी पर करें इस चमत्कारी चालीसा का पाठ, मिलेगा निरोगी काया का वरदान

शीतला सप्तमी (Sheetala Saptami 2024) के व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा धार्मिक महत्व है। इस दिन जातक देवी शीतला की विशेष पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मां के पास ऐसी चमत्कारी शक्तियां हैं जिससे भक्तों के सभी प्रकार के त्वचा संबंधित रोग दूर होते हैं। इस साल यह व्रत 1 अप्रैल दिन सोमवार यानी आज रखा जा रहा है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 01 Apr 2024 01:35 PM (IST)
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Sheetala Saptami 2024: श्री शीतला चालीसा का पाठ
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Sheetala Saptami 2024: हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन मां शीतला को समर्पित है। यह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 1 अप्रैल, 2024 दिन सोमवार यानी आज रखा जा रहा है। इस दिन को लेकर लोगों की अपनी -अपनी मान्यताएं हैं।

ऐसा कहा जाता है कि जो साधक इस दिन मां शीतला की पूजा भाव के साथ करते हैं और उनकी चालीसा का पाठ करते हैं उन्हें सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

।।श्री शीतला चालीसा।।

''दोहा''

जय-जय माता शीतला, तुमहिं धरै जो ध्यान।

होय विमल शीतल हृदय, विकसै बुद्धि बल ज्ञान।।

घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार।

शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार।।

''चौपाई''

जय-जय-जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।।

गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित। पूरन शरन चंद्रसा साजती।।

विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीरा।।

मातु शीतला तव शुभनामा। सबके गाढ़े आवहिं कामा।।

शोकहरी शंकरी भवानी। बाल-प्राणरक्षी सुखदानी।।

शुचि मार्जनी कलश करराजै। मस्तक तेज सूर्य समसाजे।।

चौसठ योगिन संग में गावैं। वीणा ताल मृदंग बजावै।।

नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं। सहज शेष शिव पार ना पावैं।।

धन्य-धन्य भात्री महारानी। सुरनर मुनि तब सुयश बखानी।।

ज्वाला रूप महा बलकारी। दैत्य एक विस्फोटक भारी।।

ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी।।

हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक।।

हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।

तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।।

विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।।

बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।।

अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर रहि हो।।

पूजन पाठ मातु जब करी है। भय आनंद सकल दुःख हरी है।।

अब भगतन शीतल भय जै हे। विस्फोटक भय घोर न सै हे।।

श्री शीतल ही बचे कल्याना। बचन सत्य भाषे भगवाना।।

कलश शीतलाका करवावै। वृजसे विधीवत पाठ करावै।।

विस्फोटक भय गृह गृह भाई। भजे तेरी सह यही उपाई।।

तुमही शीतला जगकी माता। तुमही पिता जग के सुखदाता।।

तुमही जगका अतिसुख सेवी। नमो नमामी शीतले देवी।।

नमो सूर्य करवी दुख हरणी। नमो नमो जग तारिणी धरणी।।

नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। दुख दारिद्रा निस निखंदिनी।।

श्री शीतला शेखला बहला। गुणकी गुणकी मातृ मंगला।।

मात शीतला तुम धनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी।।

राघव खर बैसाख सुनंदन। कर भग दुरवा कंत निकंदन।।

सुनी रत संग शीतला माई। चाही सकल सुख दूर धुराई।।

कलका गन गंगा किछु होई। जाकर मंत्र ना औषधी कोई।।

हेत मातजी का आराधन। और नही है कोई साधन।।

निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय ईप्सित सो फल पावै।।

कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे।।

बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे।।

सुंदरदास नाम गुण गावत। लक्ष्य मूलको छंद बनावत।।

या दे कोई करे यदी शंका। जग दे मैंय्या काही डंका।।

कहत राम सुंदर प्रभुदासा। तट प्रयागसे पूरब पासा।।

ग्राम तिवारी पूर मम बासा। प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा।।

अब विलंब भय मोही पुकारत। मातृ कृपाकी बाट निहारत।।

बड़ा द्वार सब आस लगाई। अब सुधि लेत शीतला माई।।

''दोहा''

यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय।

सपनें दुख व्यापे नही नित सब मंगल होय।।

बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू।

जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू।।

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