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Shivling Puja: किस शिवलिंग की पूजा करने पर प्रसन्न होते हैं भगवान शंकर? मिलता है मनचाहा वर

Shivling Ki Puja शिवलिंग की पूजा शास्त्रों में बहुत विशेष मानी गई है। शिवलिंग कई प्रकार के होते हैं जिनका अपना- अपना महत्व हैं। मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग की पूजा करने से भगवान शंकर की कृपा प्राप्त होती है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि कैसे शिवलिंग की पूजा करके अपनी समस्याओं से निजात पाया जा सकता है -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Sun, 28 Jan 2024 11:42 AM (IST)
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Shivling Puja: किस शिवलिंग की पूजा करने पर प्रसन्न होते हैं भगवान शंकर
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shivling Puja: शिवलिंग की पूजा सनातन धर्म में बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण मानी गई है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शिवलिंग कई प्रकार के होते हैं, जिनका अपना- अपना महत्व और मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग में स्वयं भगवान शंकर विराजमान हैं।

ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि कैसे शिवलिंग की पूजा करके अपनी मुश्किलों को दूर किया जा सकता है। तो आइए जानते हैं -

भगवान शिव को इस विधि से करें प्रसन्न

चांदी शिवलिंग

चांदी के शिवलिंग की पूजा बहुत अच्छी मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त चांदी के शिवलिंग की आराधना करते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिल जाती है। साथ ही घर से पितृ दोष समाप्त होता है। इसलिए जो लोग पितृ दोष से परेशान हैं उन्हें चांदी के शिवलिंग की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए।

स्फटिक शिवलिंग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, स्फटिक से बने शिवलिंग का अभिषेक करने से सभी प्रकार की इच्छाएं पूर्ण होती हैं, जो लोग चाहते हैं कि उनकी मनोकामनाएं फलीभूत हों उन्हें स्फटिक के शिवलिंग की पूजा विधि अनुसार करनी चाहिए। साथ ही पूजा में बेलपत्र शामिल करना चाहिए।

कांस्य शिवलिंग

कांस्य के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने से भगवान शंकर अपने भक्तों पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसका अभिषेक बेहद कल्याणकारी होता है, जो जातक यश कीर्ति की कामना रखते हैं उन्हें कांस्य के बने शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

शिवलिंग पूजा मंत्र

  • मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।

    तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

    श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः स्नानीयं जलं समर्पयामि।

  • ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
  • ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
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डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'