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Shivling worship Niyam: कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

शंकर भगवान से जुड़ी जो सबसे खास बात यह है कि केवल शिव ही हैं जिन्हें मूर्ति और निराकार लिंग दोनों रूपों में पूजा जाता है। हिंदू धर्म में शिवलिंग की पूजा का इतना महत्व है कि इसकी पूजा समस्त ब्रह्मांड की पूजा के बराबर मानी जाती है।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sun, 28 May 2023 06:13 PM (IST)
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Shivling worship Niyam कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति।

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Shivling worship Niyam: लोग शिवलिंग को भगवान शिव के प्रतीक के रूप में पूजते हैं। सोमवार के दिन शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है। इसके पूजन से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। लेकिन कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं मौजूद हैं।

क्या है शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ

‘शिव’ का अर्थ है ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ होता है ‘सृजन’। वहीं संस्कृत में लिंग शब्द का प्रयोग चिन्ह या प्रतीक के लिए होता है। इस प्रकार शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक।

कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति

पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्माजी में इस बात को लेकर युद्ध होता रहा कि कौन ज्यादा शक्तिशाली है। इस दौरान आकाश में एक चमकीला पत्थर दिखा और आकाशवाणी हुई कि जो भी इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा, वह ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी दोनों ही उस पत्थर का अंत ढूंढने में लग गए परंतु दोनों को ही अंत नहीं मिला।

थककर भगवान विष्णु ने स्वयं हार मान ली। लेकिन ब्रह्मा जी ने सोचा कि अगर मैं भी हार मान लूं तो विष्णु ज्यादा शक्तिशाली कहलाएगा। इसलिए ब्रह्माजी ने झूठे में यह कह दिया कि उनको पत्थर का अंत मिल गया है। इसी बीच फिर से आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं और मेरा ना कोई अंत है, ना ही शुरुआत और उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए।

क्या कहती है अन्य कथा

शिवलिंग का इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है। सभी देव देवताओं में शिव ही एकमात्र भगवान हैं जिनके लिंग स्वरूप की आराधना की जाती है। दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, इसका इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है। समुद्र मंथन के समय जब विष की उत्पत्ति हुई तो समस्त ब्रह्माण की रक्षा के लिए उसे महादेव द्वारा ग्रहण किया गया।

जिससे उनका कंठ नीला हो गया। तभी से उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। लेकिन विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ़ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी चली आ रही है। शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।

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