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Shri Lakshmi Narayan Puja: आज के दिन करें श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा, धन और वैभव में होगी वृद्धि

गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की सच्चे भाव के साथ पूजा करने से आर्थिक मुश्किलें समाप्त होती हैं। साथ ही इस शुभ दिन पर लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ (Shri Lakshmi Narayan Hridaya Stotra) बेहद कल्याणकारी माना गया है। तो आइए यहां पढ़ते हैं -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Thu, 08 Feb 2024 08:54 AM (IST)
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Shri Lakshmi Narayan Hridaya Stotra : गुरुवार पूजा
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shri Lakshmi Narayan Hridaya Stotra: गुरुवार के दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से धन और सौभाग्य में वृद्धि होती है। यह दिन श्री हरि विष्णु को अति प्रिय है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में इस दिन का बड़ा महत्व है। यदि आपके पास धन और वैभव की कमी है, और आप लगातार आर्थिक समस्याओं से परेशान हैं, तो आपको किसी भी गुरुवार को सुबह उठकर माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा विधि अनुसार करनी चाहिए।

साथ ही लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन से धन संबंधित सभी मुश्किलें दूर हो जाएंगी। तो आइए यहां पढ़ते हैं -

।।श्रीलक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्रं।।

ॐ अस्य श्री नारायणहृदयस्तोत्रमंत्रस्य भार्गव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीलक्ष्मीनारायणो देवता, श्री लक्ष्मीनारायण प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः

करन्यास

ॐ नारायणः परम् ज्योतिरित्यन्गुष्ठाभ्यनमः

ॐ नारायणःपरम् ब्रह्मेति तर्जनीभ्यानमः

ॐ नारायणः परो देव इति मध्य्माभ्यान्मः

ॐ नारायणःपरम् धामेति अनामिकाभ्यान्मः

ॐ नारायणः परो धर्म इति कनिष्टिकाभ्यान्मः

ॐ विश्वं नारायणःइति करतल पृष्ठाभ्यानमः एवं हृदयविन्यासः

ध्यान

उद्ददादित्यसङ्गाक्षं पीतवाससमुच्यतं।

शङ्ख चक्र गदापाणिं ध्यायेलक्ष्मीपतिं हरिं।।

'ॐ नमो भगवते नारायणाय' इति मन्त्रं जपेत्।

श्रीमन्नारायणो ज्योतिरात्मा नारायणःपरः।

नारायणः परम्- ब्रह्म नारायण नमोस्तुते।।

नारायणः परो -देवो दाता नारायणः परः।

नारायणः परोध्याता नारायणः नमोस्तुते।।

नारायणः परम् धाम ध्याता नारायणः परः।

नारायणः परो धर्मो नारायण नमोस्तुते।।

नारायणपरो बोधो विद्या नारायणः परा।

विश्वंनारायणः साक्षन्नारायण नमोस्तुते।।

नारायणादविधिर्जातो जातोनारायणाच्छिवः।

जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोस्तुते।।

रविर्नारायणं तेजश्चन्द्रो नारायणं महः।

बहिर्नारायणः साक्षन्नारायण नमोस्तु ते।।

नारायण उपास्यः स्याद् गुरुर्नारायणः परः।

नारायणः परो बोधो नारायण नमोस्तु ते।।

नारायणःफलं मुख्यं सिद्धिर्नारायणः सुखं।

सर्व नारायणः शुद्धो नारायण नमोस्तु ते।।

नारायण्त्स्वमेवासि नारायण हृदि स्थितः।

प्रेरकः प्रेर्यमाणानां त्वया प्रेरित मानसः।।

त्वदाज्ञाम् शिरसां धृत्वा जपामिजनपावनं।

नानोपासनमार्गाणां भावकृद् भावबोधकः।।

भाव कृद भाव भूतस्वं मम सौख्य प्रदो भव।

त्वन्माया मोहितं विश्वं त्वयैव परिकल्पितं।।

त्वदधिस्ठानमात्रेण सैव सर्वार्थकारिणी।

त्वमेवैतां पुरस्कृत्य मम कामाद समर्पय।।

न में त्वदन्यःसंत्राता त्वदन्यम् न हि दैवतं।

त्वदन्यम् न हि जानामि पालकम पुण्यरूपकं।।

यावत सान्सारिको भावो नमस्ते भावनात्मने।

तत्सिद्दिदो भवेत् सद्यः सर्वथा सर्वदा विभो।।

पापिनामहमेकाग्यों दयालूनाम् त्वमग्रणी।

दयनीयो मदन्योस्ति तव कोत्र जगत्त्रये।।

त्वयाप्यहम न सृष्टश्चेन्न स्यात्तव दयालुता।

आमयो वा न सृष्टश्चेदौषध्स्य वृथोदयः।।

पापसङघपरिक्रांतः पापात्मा पापरूपधृक।

त्वदन्यः कोत्र पापेभ्यस्त्राता में जगतीतले।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखात्वमेव।

त्वमेव विद्या च गुरस्त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।

प्रार्थनादशकं चैव मूलाष्टकमथापि वा।

यः पठेतशुणुयानित्यं तस्य लक्ष्मीःस्थिरा भवेत्।।

नारायणस्य हृदयं सर्वाभीष्टफलप्रदं।

लक्ष्मीहृदयकंस्तोत्रं यदि चैतद् विनाशकृत।।

तत्सर्वं निश्फ़लम् प्रोक्तं लक्ष्मीः क्रुधयति सर्वतः।

एतत् संकलितं स्तोत्रं सर्वाभीष्ट फ़ल् प्रदम्।।

लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं तथा नारायणात्मकं।

जपेद् यः संकलिकृत्य सर्वाभीष्टमवाप्नुयात।।

नारायणस्य हृदयमादौ जपत्वा ततः पुरम्।

लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं जपेन्नारायणं पुनः।।

पुनर्नारायणं जपत्वा पुनर्लक्ष्मीहृदं जपेत्।

पुनर्नारायणंहृदं संपुष्टिकरणं जपेत्।।

एवं मध्ये द्विवारेण जपेलक्ष्मीहृदं हि तत्।

लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं सर्वमेतत् प्रकाशितं।।

तद्वज्ज पादिकं कुर्यादेतत् संकलितं शुभम्।

स सर्वकाममाप्नोति आधि-व्याधि-भयं हरेत्।।

गोप्यमेतत् सदा कुर्यान्न सर्वत्र प्रकाशयेत्।

इति गुह्यतमं शास्त्रंमुक्तं ब्रह्मादिकैःपुरा।।

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तस्मात् सर्व प्रयत्नेन गोपयेत् साधयेत् सुधीः।

यत्रैतत् पुस्तकं तिष्ठेल्लक्ष्मिनारायणात्मकं।।

भूत-प्रेत-पिशाचान्श्च वेतालन्नाश्येत् सदा।

लक्ष्मीहृदयप्रोक्तेन विधिना साधयेत् सुधीः।।

भृगुवारै च रात्रौ तु पूजयेत् पुस्तकद्वयं।

सर्वदा सर्वथा सत्यं गोपयेत् साधयेत् सुधीः।।

गोपनात् साधनाल्लोके धन्यो भवति तत्ववित्।

नारायणहृदं नित्यं नारायण नमोsस्तुते।।

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