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Significance Of Eight Prahar: क्या होते हैं आठ प्रहर? जानें इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

Significance Of Eight Prahar हर एक प्रहर का धार्मिक महत्व है जिसमें किए जानें वाले अलग-अलग कार्य बनाए गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग प्रहर का ध्यान रखते हुए अपना कार्य करते हैं उनके कार्यों में कभी किसी प्रकार का विघ्न नहीं पड़ता है। वहीं वैष्णव मंदिरों में आठ प्रहर की पूजा होती है जिसे अष्टयाम के नाम से जाना जाता है।

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Thu, 18 Jan 2024 03:22 PM (IST)
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Significance Of Eight Prahar: क्या होते हैं आठ प्रहर

धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Significance Of Eight Prahar: सनातन धर्म के अनुसार, 24 घंटे में दिन और रात मिलाकर आठ प्रहर होते हैं। प्रत्येक प्रहर तीन घंटे या फिर साढ़े सात घंटे का होता है, जिसमें दो मुहूर्त होते हैं। हर एक प्रहर का अपना एक खास महत्व है। इस दौरान विशेष पूजा विधियां भी की जाती हैं। इन आठ प्रहरों में चार दिन और चार रातें शामिल होती हैं, तो आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

ये हैं 8 प्रहरों के नाम

आठ प्रहरों के नाम जैसे - पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल, प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा।

पहला प्रहर

शाम के 6:00 बजे से लेकर रात्रि के 9:00 बजे तक का समय पहला प्रहर होता है, जिसे लोग प्रदोष काल के नाम से भी जानते हैं। इस प्रहर में देवी-देवताओं की पूजा करना बेहद ही शुभ माना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान सोना, खाना, पीना, लड़ाई-झगड़ा आदि से बचना चाहिए। इस प्रहर में अगर किसी बच्चे का जन्म होता है, तो वे शारीरिक समस्याओं से घिरे रहते हैं।

दूसरा प्रहर

रात्रि के 9:00 बजे से लेकर रात्रि 12:00 बजे तक का समय दूसरा प्रहर कहलाता है। यह समय खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पेड़-पौधों को छूने से बचना चाहिए।

वहीं जिन बच्चों का जन्म इस प्रहर में होता वे कलात्मक चीजों परिपूर्ण होते हैं। साथ ही ये लोग कला के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं।

तीसरा प्रहर

रात्रि के 12:00 बजे से 3:00 बजे तक के समय को तीसरा प्रहर कहा जाता है, जिसे लोग निशिथकाल के नाम से भी जानते हैं। इस प्रहर के दौरान लोग तामसिक और तांत्रिक क्रियाएं करते हैं। ऐसे में जिन लोगों का जन्म इस तीसरे प्रहर में होता है, वे सदैव अपने घर से दूर रहते हैं और सफल होते हैं।

चौथा प्रहर

प्रात: 3:00 बजे से लेकर 6:00 बजे तक का समय चौथा प्रहर कहलाता है। यह रात्रि का अंतिम प्रहर होता है। इसलिए इसका खास महत्व होता है। इसे लोग ऊषा काल के नाम से भी जानते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान पूजा-अर्चना और शुभ काम करना अच्चा माना जाता है, जो लोग इस प्रहर में भगवान शंकर की विशेष पूजा करते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इस समय में जन्मे बच्चे बहुत ही तेजस्वी होते हैं।

पांचवा प्रहर

सुबह 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक के समय को पांचवा प्रहर कहा जाता है। यह दिन का पहला प्रहर होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान पूजा-पाठ करना बहुत अच्छा होता है।

ऐसे में प्रतिदिन की पूजा इसी समय करनी चाहिए। वहीं जिन बच्चों का जन्म इस प्रहर में होता है वे नाम और प्रतिष्ठा खूब कमाते हैं। हालांकि इनके जीवन में स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं बनी रहती हैं।

छठा प्रहर

प्रात: 9:00 बजे से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक का समय छठा प्रहर कहलाता है। इस प्रहर में मांगलिक कार्य पूर्णता वर्जित होते हैं। इस प्रहर में जन्मे बच्चे प्रशासनिक सेवा और राजनीति क्षेत्र में जाते हैं, जहां इन्हें जबरदस्त सफलता मिलती है।

सातवां प्रहर

दोपहर 12:00 बजे से लेकर शाम 3:00 बजे तक का समय सातवां प्रहर कहलाता है। इस दौरान शुभ कार्य करना अच्छा होता है। वहीं जिन बच्चों का जन्म इस प्रहर में होता है वे स्वभाव से बेहद जिद्दी होते।

आठवां प्रहर

शाम 3:00 बजे से लेकर 6:00 बजे तक का समय दिन का आखिरी और आठवां प्रहर होता है। इस दौरान भूलकर भी नहीं सोना चाहिए। वहीं इस प्रहर में जिन शिशुओं का जन्म होता है वे फिल्म, मीडिया और ग्लैमर के क्षेत्र अपनी पहचान बनाते हैं।

8 प्रहर का धार्मिक महत्व

हर एक प्रहर का धार्मिक महत्व है, जिसमें किए जानें वाले अलग-अलग कार्य बनाए गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग प्रहर का ध्यान रखते हुए अपना कार्य करते हैं उनके कार्यों में कभी किसी प्रकार का विघ्न नहीं पड़ता है।

वहीं वैष्णव मंदिरों में आठ प्रहर की पूजा होती है, जिसे 'अष्टयाम' के नाम से जाना जाता है। इसलिए जो जातक अपने कार्यों का शुभ परिणाम चाहते हैं, उन्हें इन प्रहरों के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए।

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