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Somvati Amavasya 2024: सोमवती अमावस्या को संध्याकाल में करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी निजात

चैत्र माह की अमावस्या 08 अप्रैल को है। इस दिन सूर्य ग्रहण भी लगने वाला है। हालांकि यह भारत में नहीं दिखाई देगा। इसके बावजूद ग्रहण के दौरान शास्त्र नियमों का पालन जरूर करें। सोमवार के दिन चैत्र अमावस्या पड़ रही है। इसके लिए यह सोमवती अमावस्या कहलाएगी। सोमवती अमावस्या पितरों के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन पितरों का तर्पण किया जाता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 03 Apr 2024 04:26 PM (IST)
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Somvati Amavasya 2024: सोमवती अमावस्या को संध्याकाल में करें इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Somvati Amavasya 2024: हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के अगले दिन अमावस्या तिथि पड़ती है। इस प्रकार चैत्र माह की अमावस्या 08 अप्रैल को है। इस दिन सूर्य ग्रहण भी लगने वाला है। हालांकि, यह भारत में नहीं दिखाई देगा। इसके बावजूद ग्रहण के दौरान शास्त्र नियमों का पालन जरूर करें। सोमवार के दिन चैत्र अमावस्या पड़ रही है। इसके लिए यह सोमवती अमावस्या कहलाएगी। सोमवती अमावस्या पितरों के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन पितरों का तर्पण किया जाता है। सोमवती अमावस्या पर पितरों की पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में पितृ दोष लगने से व्यक्ति को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है। अगर आप भी पितृ दोष से परेशान हैं, तो सोमवती अमावस्या के दिन पितरों की पूजा करें। साथ ही संध्याकाल में गौशाला या छत पर दक्षिण दिशा में पितृ कवच का पाठ अवश्य करें। इस कवच के पाठ से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

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पितृ स्तोत्र

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

पितृ कवच

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

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