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Sri Krishna Leela: श्रीकृष्ण की लीला द्वारा हुआ कुबेर के पुत्रों का उद्धार, नारद मुनि ने दिया था श्राप

हिंदू धर्म में कुबेर देव को धन के देवता के रूप में पूजा जाता है। एक बार कुबेर के दो पुत्रों नलकुबेर और मणिग्रीव से क्रोधित होकर देवर्षि नारद ने उन्हें एक श्राप दिया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपने बालपन में की गई एक लीला से इन दोनों को इस श्राप से मुक्ति मिली थी। तो चलिए जानते हैं यह दिव्य कथा।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 29 Oct 2024 03:18 PM (IST)
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Sri Krishna Leela श्रीकृष्ण की लीला द्वारा हुआ कुबेर के पुत्रों का उद्धार।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म ग्रंथों में श्रीकृष्ण से जुड़ी कई कथाएं सुनने को मिलती हैं, जो प्रेरित करने के साथ-साथ व्यक्ति को चकित भी करती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल स्वरूप में कई लीलाएं की, जो आज भी बड़े भक्ति भाव के साथ याद की जाती हैं। आज हम आपको भगवान कृष्ण की बालपन में की गई एक ऐसी ही लीला बताने जा रहे हैं, जिसके द्वारा कुबेर के पुत्रों को मुक्ति मिली थी।

क्यों मिला श्राप

कथा के अनुसार, कुबेर के पुत्र नलकुबेर और मणिग्रीव दोनों ही बुरे आचरण वाले और घमंडी थे। एक बार वह स्त्रियों के साथ मदिरा पीकर जल-क्रीड़ा कर रहे थे। उसी समय वहां से देवर्षि नारद गुजर रहे थे, जिन्हें देखकर स्त्रियां तो पानी से बाहर निकल आईं, लेकिन कुबेर के दोनों पुत्र उसी अवस्था में वहां खड़े रहे। उन दोनों ने नारद जी का अभिनंदन भी नहीं किया, जिससे नारद जी को अपना अपमान महसूस हुआ।

वह सोचने लगे कि इतने प्रतिष्ठित इष्ट माने जाने वाले कुबेर जी के पुत्र होकर भी इन दोनों में इतना अहंकार है। तब क्रोध में आकर देवर्षि नारद ने उन्हें श्राप देते हुए कहा कि  ‘तुम दोनों जड़ की भांति हो, अत: मैं तुम्हें ये श्राप देता हूं कि तुम दोनों वृक्ष बन जाओगे।’ नारद जी के यह वचन सुनकर दोनों को अपनी गलती पर पछतावा हुआ और वह क्षमा याचना करने लगे। तब नारद जी ने कहा कि तुम दोनों ब्रज में नंद जी के घर में वृक्ष बनोगे और द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के हाथों तुम्हारा उद्धार होगा।

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इस तरह मिली मुक्ति

एक बार द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को उनकी शरारतों के कारण माता यशोदा ने एक बड़ी-सी ओखली से बांध दिया।   इसके बाद श्रीकृष्ण ने खुद को छुड़ाने के प्रयास में ओखली को घसीटना शुरू कर दिया और द्वार पर खड़े दो वृक्षों के पास पहुंच गए। उन्होंने दोनों वृक्षों के बीच में ओखली को अटका दिया और पूरा बल लगाकर रस्सी को खींचने लगे, जिससे वह दोनों पेड़ गिर गए। इस प्रकार नलकुबेर और मणिग्रीव वृक्ष योनि से मुक्त हो गए और श्रीकृष्ण का आभार व्यक्त किया।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।