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Surya Dev: रविवार के दिन भगवान सूर्य की इस स्तुति का करें पाठ, मिलेगा सुख-समृद्धि का वरदान

हिंदू धर्म में रविवार का दिन सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन विधिपूर्वक सूर्य नारायण की पूजा-व्रत करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि रविवार को सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। वहीं रविवार के दिन पूजा के दौरान सूर्य स्तोत्र और स्तुति का पाठ भी बहुत अच्छा माना गया है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 18 Aug 2024 08:24 AM (IST)
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Surya Dev: सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम् -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रविवार का दिन बहुत खास माना गया है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो लोग सच्चे भाव के साथ व्रत रखते हैं और विधिवत सूर्य नारायण की पूजा करते हैं उनके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही मनचाहे करियर और पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सूर्य देव को प्रसन्न करना बहुत आसान है। सुबह उठकर पवित्र स्नान करें। इसके बाद सूर्य देव को लाल फूल और गुड़, रोली डालकर अर्घ्य दें।

फिर वहीं, खड़े होकर 'सूर्य स्तोत्र और स्तुति का पाठ' का पाठ करें। आरती से पूजा का समापन करें और भगवान सूर्य (Surya Dev) से अपने मन की इच्छा बोलें। ऐसा करने से आपकी सभी मुरादें पूर्ण होंगी।

।।सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम्।।

सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: ।

गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ।।

पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।

सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।

इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: ।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम: ।।

वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति: ।

धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन: ।।

कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: ।

कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण: ।।

संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: ।

पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ।।

कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: ।

वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।

भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।

स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत: ।।

अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख: ।

जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।

मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: ।

धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत: ।।

द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: ।

स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।

देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: ।

चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित: ।।

एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस: ।

नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।

।।श्री सूर्य स्तुति।।

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।

त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।

विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।

सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।

वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान-मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥

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