Surya Dev Puja: रविवार के दिन इस एक कार्य से मिलेगा लाभ, प्राप्त होगी सूर्य देव की असीम कृपा
हिंदू धर्म में अन्य देवी-देवताओं की तरह सूर्य की भी पूजा का विधान है। यह भी माना जाता है कि रोजाना सुबह सूर्य देव को जल अर्पित करने से साधक को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य को ग्रहों का राजा बताया गया है। चलिए जानते हैं सूर्य देव की कृपा प्राप्ति के लिए रविवार के दिन क्या करना चाहिए।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है, उसे जीवन में अपार धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देना बहुत ही पुण्यकारी माना गया है। ऐसे में यदि आप रोजाना, विशेषकर रविवार के दिन सूर्य चालीसा का पाठ करते हैं, तो इससे आपको सूर्य देव की कृपा प्राप्त हो सकती है।
सूर्य चालीसा (Surya Chalisa)
दोहा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
दोहाभानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।