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Vivekananda Jayanti 2023 : स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन पर जानिए, कैसे चरित्र पर पड़ता है कर्म का प्रभाव?

Swami Vivekananda Jayanti 2023 स्वामी विवेकानंद अपने जीवन से कई लोगों को प्रेरणा देने के साथ अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। उनकी ऐसी किताब है कर्म योग। उनके अनुसार मनुष्य के जीवन का उद्देश्य है ज्ञान को प्राप्त करना।

By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Wed, 11 Jan 2023 08:10 PM (IST)
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Swami Vivekananda Jayanti 2023: कर्मयोग पुस्तक में विवेकानंद ने कहा, हमारा ज्ञान हमारे कर्मों का ही फल होता है।

नई दिल्ली, Swami Vivekananda Jayanti 2023: हर वर्ष 12 जनवरी के दिन स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी ने अपने जीवन काल कई महत्वपूर्ण विषयों को आम-जन तक पहुंचाने का कार्य किया था। अपनी पुस्तक कर्मयोग में कर्म की महत्ता को बताते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा है। यह मानना पूरी तरह भ्रामक है कि, मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य सुख प्राप्त करना है। उनके अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य है, ज्ञान को प्राप्त करना। क्योंकि सुख और धन दोनों ही नाशवान है। जबकि ज्ञान हमेशा उसके साथ रहता है। इसी लिए मनुष्य को निरंतर ऐसे कर्म करने चाहिए जो उसके ज्ञान में वृद्धि करते हैं। वह यह भी कहते हैं कि ज्ञान कहीं बाहर से नहीं आता, बल्कि हमारे अपने अंदर होता है।

कर्म से पैदा होता है ज्ञान

कर्मयोग में स्वामी विवेकानंद ने कहा है, कि हमारा ज्ञान हमारे कर्मों का ही फल होता है। अक्सर लोग कहते हैं कि इस बात का आविष्कार किया गया। वास्तव में यह आविष्कार ही कर्म है, और इससे मिलने वाली जानकारी ज्ञान है। जैसे-जैसे आविष्कार होता जाता है। वैसे वैसे ज्ञान बढ़ता जाता है।

बड़े नहीं छोटे कर्मों से निर्धारित होता है चरित्र

स्वामी विवेकानंद का मानना है, कि किसी व्यक्ति की बहुत बड़ी उपलब्धि को उसकी योग्यता और चरित्र का प्रमाण नहीं समझना चाहिए। जिस तरह कई छोटी-छोटी लहरों से बनने वाले बड़े स्वर को हम समुद्र की विशाल ध्वनि समझ लेते हैं, और उस ध्वनि को समुद्र की विशालता का प्रतीक मान लेते हैं। जो कि सही नहीं है। मुख्य कार्य तो छोटी-छोटी लहरें कर रही हैं। उसी प्रकार हमारे छोटे-छोटे कार्य हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं।

स्वामी जी के अनुसार किसी विशेष समय पर, विशेष परिस्थिति में एक बड़ा कार्य तो कभी-कभी कोई मूर्ख भी कर लेता है। इससे वह श्रेष्ठ नहीं बन जाता। वास्तव में श्रेष्ठता की परख किसी व्यक्ति द्वारा निरंतर किए जा रहे छोटे-छोटे कामों से होती है। और वही उसके चरित्र का निर्माण करते हैं।