Move to Jagran APP

महान धर्मयोद्धा गुरु हरगोबिंद जी, जिन्होंने मानवीय मूल्यों के आधार पर किया था पहली बार सिख सेना का गठन

गुरु हरगोबिंद जी ने बलिष्ठ व वीर युवकों को सम्मिलित कर प्रथम सिख सेना का गठन भी किया। उनसे जब इन परिवर्तनों पर प्रश्न किए गये तो गुरु साहिब ने कहा कि उनका सोच व आचार त्याग एवं अध्यात्म आधारित ही है भले ही प्रकट रूप राजसी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 13 Jun 2022 05:54 PM (IST)
Hero Image
गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने अपने काल में अनेक नगर बसाये, सरोवर बनवाये व लोगों के कष्ट दूर किये।
डा. सत्येन्द्र पाल सिंह। गुरु अरजन साहिब के लाहौर में बलिदान के बाद गुरुगद्दी पर छठें गुरु के रूप में आसीन होने के बाद गुरु हरगोबिंद जी धर्म व मानवीय मूल्यों के सशक्त पक्षधर बन कर उभरे। वह पहले गुरु थे, जिन्होंने दो तलवारें धारण कीं, जिनमें एक धर्मसत्ता व दूसरी राजशक्ति का प्रतीक थी। अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब के ठीक सामने श्री अकाल तख्त साहिब का निर्माण करा कर उन्होंने संदेश दिया कि संसार में वास्तविक राज्य परमात्मा का है। समस्त सांसारिक शक्तियों का धर्म की मर्यादा में रहना ही श्रेयस्कर है। गुरु हरगोबिंद जी ने बलिष्ठ व वीर युवकों को सम्मिलित कर प्रथम सिख सेना का गठन भी किया। उनसे जब इन परिवर्तनों पर प्रश्न किए गये, तो गुरु साहिब ने कहा कि उनका सोच व आचार, त्याग एवं अध्यात्म आधारित ही है, भले ही प्रकट रूप राजसी है। ये शस्त्र निर्बल की रक्षा व अन्यायी के नाश के लिए हैं। उन्होंने भविष्य में इसे सिद्ध भी किया।

एक बार मुगल शासक जहांगीर ने उन्हें धोखे से कैद कर लिया व ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा। जब जहांगीर को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उसने गुरु साहिब को रिहा करने का आदेश दिया। गुरु साहिब ने शर्त रखी कि वे तभी किले से बाहर आएंगे, जब वहां पहले से बंदी 52 हिंदू राजाओं को भी छोड़ा जाएगा। बंदी हिंदू राजाओं को मुक्त कराकर ही गुरु साहिब बाहर आये। अमृतसर पहुंचने पर सिखों ने भव्य दीपमाला का आयोजन किया। संयोग से उस दिन दीवाली थी। तब से श्री हरिमंदिर साहिब में दीवाली के दिन दीपमाला की जाती है। इसे बंदीछोड़ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। बाद में जहांगीर जब तक जीवित रहा, गुरु साहिब से संबंध बनाकर रखे।

गुरु हरगोबिंद जी ने धर्म प्रचार यात्राएं कीं और स्थान-स्थान पर लोगों को परमात्मा से जोड़ा। एक बार अपने द्वारा ही बसाये गए महिराज नामक स्थान पर गुरु साहिब के दरबार में भाई काला नामक एक श्रद्धालु अपने दो भतीजों के साथ आया। उनमें से एक बालक फूल वस्त्रहीन था। वह गुरु साहिब के सामने आकर अपना पेट बजाने लगा। भाई काला ने गुरु साहब को बताया कि यह अनाथ व भूखा है। गुरु साहिब ने उस बच्चे को बहुत से वर दिए, बाद में उसी फूल के वंशज पंजाब की नाभा, पटियाला व जींद रियासतों के शासक बने। इन्हें फुलकियां राज्य भी कहा जाता है।

दिल्ली तख्त पर शाहजहां के बैठने के बाद मुगलों का पुन: सिखों से टकराव आरंभ हो गया। गुरु हरगोबिंद साहिब का बढ़ता प्रभाव शाहजहां को सहन नहीं हुआ। उसने 1628 में अपनी फौज भेजकर अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में मुगलों की करारी हार हुई और गुरु साहिब ने विजय प्राप्त की। आने वाले वर्षों में तीन युद्ध और हुए, सभी युद्धों में गुरु साहिब ने विजय प्राप्त की। उनके लिए ये वस्तुत: धर्म युद्ध थे। गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने अपने काल में अनेक नगर बसाये, सरोवर बनवाये व लोगों के कष्ट दूर किये।