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प्रकृति का उत्सव भी है हरियाली तीज

सावन के महीने में हरियाली तीज मनाई जाती है। इसे हरियाली की शुरुआत करने वाला त्यौहार भी माना जाता है। पंडित श्रीपति त्रिपाठी बता रहे हैं हरियाली तीज के महत्व के बारे में...

By shweta.mishraEdited By: Updated: Wed, 26 Jul 2017 03:54 PM (IST)
प्रकृति का उत्सव भी है हरियाली तीज
इन नामों से भी इसे बुलाते हैं

हरियाली तीज सावन महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। उत्तर भारत में मनाया जाने वाला यह पर्व केवल एक धार्मिक त्यौहार ही नहीं बल्कि प्रकृति का उत्सव भी है। दरअसल, बरसात के इस मौसम में प्रकृति में सभी ओर हरियाली होती है जो इसकी खूबसूरती को दोगुना कर देती है। इसी कारण इस त्यौहार को हरियाली तीज कहते हैं। तीज सभी पर्वों की शुरुआत का प्रतीक भी मानी जाती है। इसे श्रावणी तीज, कजली तीज या मधुश्रवा तीज भी कहते हैं। 

ससुराल से सिंजारा भेजा जाता

पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार, देवी पार्वती ने महादेव शिव को प्राप्त करने के लिए सौ वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। अपनी अथक साधना से उन्होंने इसी दिन भगवान शिव को प्राप्त किया था। यही कारण है कि विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्य और कुंवारी कन्याएं योग्य वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। इस त्योहार पर नवविवाहितओं को ससुराल से सिंजारा भेजा जाता है, जिसमें नए वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार सामग्री तथा मेहंदी और मिठाई होती है।

हरियाली तीज की पूजन विधि 

आज तृतीया तिथि सुबह 9 बजकर 57 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक है। कई जगह यह त्यौहार 3 दिन मनाया जाता है। इसमें पत्नियां निर्जला व्रत रखती हैं, हाथों में नई चूडिय़ां, मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं और नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। आज ही के दिन घरों में झूला डाला जाता है। इस दिन महिलाएं किसी बगीचे या मंदिर में एकत्रित होकर मां की प्रतिमा को रेशमी वस्त्र और गहनों से सजाती हैं। अद्र्ध गोले का आकार बनाकर माता की मूर्ति बीच में रखकर उनकी पूजा करती हैं तथा तीज की कथा कहती हैं।