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Chanakya Niti: ताउम्र खुश रहते हैं ये 3 तरह के लोग, राजाओं की तरह जीते हैं अपना जीवन

Chanakya Niti इतिहासकारों की मानें तो चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने में आचार्य चाणक्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके लिए आचार्य चाणक्य ने कई बार चन्द्रगुप्त मौर्य की परीक्षा भी ली। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई प्रमुख शास्त्रों की रचनाएं की हैं। इनमें नीति शास्त्र सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस शास्त्र में चाणक्य ने जीवन में सफल होने के सूत्र बताए हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 28 Aug 2023 02:05 PM (IST)
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Chanakya Niti: ताउम्र खुश रहते हैं ये 3 तरह के लोग, राजाओं की तरह जीते हैं अपना जीवन

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे। अखंड भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें कौटिल्य भी कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने में आचार्य चाणक्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके लिए आचार्य चाणक्य ने कई बार चन्द्रगुप्त मौर्य की परीक्षा भी ली। उन्होंने अपने जीवन काल में कई प्रमुख शास्त्रों की रचनाएं की हैं। इनमें नीति शास्त्र सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस शास्त्र में आचार्य चाणक्य ने जीवन में सफल होने के सूत्र बताए हैं। आचार्य चाणक्य की मानें तो 3 तीन तरह के लोग ताउम्र खुश रहते हैं। उन्हें मृत्यु लोक में ही स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है। आइए, इनके बारे में जानते हैं-

आज्ञाकारी पुत्र

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में होता है। उसे थ्वी पर स्वर्ग लोक समान सुखों की प्राप्ति होती है। कलि काल में श्रवण कुमार समान पुत्र होना कठिन है, किंतु अगर कोई पुत्र अपने पिता की हर बात मानता है। अपने पिता की सेवा और सम्मान करता है, तो वह व्यक्ति (पिता) ताउम्र खुश रहता है और राजाओं की तरह अपना जीवन व्यतीत करता है।

पतिव्रता नारी

आधुनिक समय में पतिव्रता नारी का महत्व बढ़ गया है। विरलय ही व्यक्ति को आज्ञाकारी पत्नी मिलती है। आचार्य चाणक्य की मानें तो जिस व्यक्ति को आज्ञाकारी पत्नी मिलती है। वह खुशनसीब इंसान है। मानो, उसे स्वर्ग में स्थान मिल गया है। पति-पत्नी के विचार एक रहने या मिलने से परिवार का विकास तीव्र गति से होता है।

दानी

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन की तीन गति होती है। अगर कोई धनवान बन जाता है, तो उसे धन का दान करना चाहिए। अगर वह दान नहीं करता है, तो उसके धन का नाश हो जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि धन का व्यय स्वयं और परिवार पर करना चाहिए। इसके बाद बचे धन का दान करना चाहिए। अगर कृपण होकर धन संचय करते हैं, तो धन का नाश होना निश्चित है। अगर कोई व्यक्ति धन संचय करने के साथ-साथ दान करता है, तो उस पर भगवान की कृपा बरसती है। उसे मृत्यु लोक में ही सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '