Durga Puja Navratri 2019: हिमालय छोड़कर 10 दिन के लिए पीहर आती हैं दुर्गा मां, ऐसी है पौराणिक मान्यता
मां दुर्गा पति को हिमालय छोड़कर 10 दिनों के लिए पीहर आती है। जिसे नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं मां दुर्गा के पूजन विधि के बारे में विस्तार से...
By Priyanka SinghEdited By: Updated: Sun, 29 Sep 2019 01:30 PM (IST)
नई दिल्ली,जेएनएन। Durga Puja Navratri 2019: दुर्गा पूजा की खासियत है कि यहां जाति-धर्म या वर्ग का भेदभाव नहीं है। लोग अपनी श्रद्धा और इच्छा से माता की पूजा करते और चढ़ावा चढ़ाते हैं। 29 सितंबर से नवरात्रि की शुरूआत हो रही है। तो आइए जानते हैं दुर्गा पूजा से जुड़े विधि-विधान के बारे में।
दुर्गा पूजा का विधि-विधानपूजा-अनुष्ठान, सुगंधित पकवान, खरीदारी, रेडियो-सीडीज पर चंडी पाठ का रसास्वादन....दुर्गा पूजा के अनिवार्य नियम हैं। माना जाता है कि हर वर्ष दुर्गा अपने पति को हिमालय पर छोड़ कर 10 दिन के लिए पीहर आती हैं। प्रतिमा की पूजा होती है सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन। नवरात्र के छठे दिन प्रतिमा को लाया जाता है और पंडाल में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा होती है। लकड़ी पर जूट और भूसे से ढांचा तैयार किया जाता है, मिट्टी में धान के छिलके (भूसे) को मिला कर मूर्तियां तैयार की जाती हैं। खूबसूरत रंगों से इन्हें अंतिम रूप दिया जाता है। फिर वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं।
प्रतिमा के पंडाल में आने पर शाम को 'बोधन' के साथ प्रतिमा का आवरण हटाया जाता है। इस दिन स्त्रियां उपवास रखती हैं। शाम को 'लुचि-तरकारी' यानी पूरी-सब्जी का लुत्फ उठाया जाता है। सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। दुर्गा पूजा के इन चार दिनों में रोज सुबह जल्दी उठ, नहा-धोकर नए वस्त्र पहन कर मां को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है। पंडालों में सुबह से ही लाल पाड़ की साड़ी पहनी स्त्रियां पूजा-अर्चना करती दिखाई देती हैं। ढाक (ढोल) के साथ मां की आरती होती है और भोग लगाया जाता है। फूल की थाली बजाई जाती है। दोपहर को खिचुडि़ (खिचड़ी) और तरकारी का प्रसाद वितरित होता है। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं की चहल-पहल होती है। रविंद्र संगीत बजता है। अष्टमी के दिन संधि-पूजा होती है। मंत्रोच्चार के साथ 108 दीप प्रज्वलित होते हैं और निर्जल उपवास रखा जाता है। नवमी पर 'कुमारी पूजा' होती है, जिसमें छोटी कन्या की पूजा होती है।
बंगाल में इस दिन शाम को धुनुचि नाच व शंख वादन प्रतियोगिताएं होती हैं। दशमी की सुबह प्रतिमा विसर्जन होता है। मां को सिंहासन से उतारा जाता है। इससे पूर्व 'सिंदूर खेला' होता है, जिसमें प्रतिमा को सिंदूर लगाकर, मिठाई व पान का भोग लगाया जाता है। सुहागिन स्त्रियां एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। मां की विदाई पर सब वैसे ही उदास हो जाते हैं जैसे बेटी की विदाई के समय होते हैं।