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Tulsi Vivah 2023: तुलसी विवाह के दिन करें भगवान शालिग्राम और विष्णुप्रिय की आरती, पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं

Tulsi Vivah 2023 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मां तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के साथ कराने का विधान है। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम जी की आरती विधि अनुसार करनी चाहिए जिससे सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आइए पढ़ते हैं -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Thu, 23 Nov 2023 01:14 PM (IST)
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Tulsi Vivah 2023: तुलसी विवाह पर ऐसे करें आरती
धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Tulsi Vivah 2023: सनातन धर्म में तुलसी विवाह का खास महत्व है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पवित्र दिन 24 नवंबर को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के साथ कराने का विधान है। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम जी की आरती विधि अनुसार करनी चाहिए, जिससे सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

तुलसी माता की आरती

जय जय तुलसी माता

सब जग की सुख दाता, वर दाता

जय जय तुलसी माता ।।

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर

रुज से रक्षा करके भव त्राता

जय जय तुलसी माता।।

बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या

विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता

जय जय तुलसी माता ।।

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित

पतित जनो की तारिणी विख्याता

जय जय तुलसी माता ।।

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में

मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता

जय जय तुलसी माता ।।

हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी

प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता

जय जय तुलसी माता ।।

श्री शालिग्राम जी की आरती

शालिग्राम सुनो विनती मेरी |

यह वरदान दयाकर पाऊं ||

प्रातः समय उठी मंजन करके |

प्रेम सहित स्नान कराऊं ||

चन्दन धूप दीप तुलसीदल |

वरण - वरण के पुष्प चढ़ाऊं ||

तुम्हरे सामने नृत्य करूं नित |

प्रभु घण्टा शंख मृदंग बजाऊं ||

चरण धोय चरणामृत लेकर |

कुटुम्ब सहित बैकुण्ठ सिधारूं ||

जो कुछ रूखा - सूखा घर में |

भोग लगाकर भोजन पाऊं ||

मन बचन कर्म से पाप किये |

जो परिक्रमा के साथ बहाऊं ||

ऐसी कृपा करो मुझ पर |

जम के द्वारे जाने न पाऊं ||

माधोदास की विनती यही है |

हरि दासन को दास कहाऊं ||

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