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Tulsidas Jayanti 2024: इस दिन मनाई जाएगी तुलसीदास जयंती, पढ़िए उनके राम भक्ति से परिपूर्ण दोहे

तुलसीदास भगवान राम के प्रति अपनी अनंत भक्ति के लिए जाने जाते हैं। रामचरितमानस तुलसीदास की सबसे प्रमुख और लोकप्रिय कृतियों में से एक है। इस महाकाव्य को संस्कृत रामायण का अवधी भाषा में पुनर्लेखन कहा जा सकता है। आज भी लोग अपने घरों में रामचरितमानस का पाठ करते हैं। तो चलिए जानते हैं तुलसीदास जी के राम भक्ति से परिपूर्ण कुछ दोहे।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Fri, 09 Aug 2024 12:50 PM (IST)
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Tulsidas Jayanti 2024 तुलसीदास जयंती पर पढ़िए राम भक्ति से परिपूर्ण दोहे। (Picture Credit: Freepik)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। तुलसीदास जी को मुख्य रूप से 'रामचरितमानस' के रचयिता के रूप में पहचाना जाता है। उनका पूरा जीवन राम भक्ति के लिए समर्पित था। मान्यताओं के अनुसार, तुलसीदास जी का जन्म श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर हुआ था। ऐसे में 11 अगस्त 2024 को तुलसीदास जी की 527 वीं जयंती मनाई जाएगी। चलिए जानते हैं तुलसीदास जी के कुछ प्रेरणादायक दोहे।

तुलसीदास के दोहे

‘तुलसी’ साथी विपत्ति के, विद्या, विनय, विवेक।

साहस, सुकृत, सुसत्य-व्रत, राम-भरोसो एक॥

इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि विद्या, विनय, ज्ञान, उत्साह और पुण्य आदि विपत्ति में व्यक्ति का साथ देने वाले गुण हैं। यह गुण व्यक्ति को भगवान राम के भरोसे से ही प्राप्त हो सकते हैं।

तुलसी’ सब छल छाड़ि कै, कीजै राम-सनेह।

अंतर पति सों है कहा, जिन देखी सब देह॥

इस दोहे में गोस्वामी जी कहते हैं कि सब छल-कपट को छोड़कर व्यक्ति को भगवान की सच्चे हृदय से भक्ति करनी चाहिए। जिस प्रकार एक पति अपनी पत्नी के शरीर के सभी रहस्यों को जानता है, उसी प्रकार प्रभु राम भी अपने भक्तों के सब कर्मों को जानते हैं।

राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।

बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥

इस दोहे का भाव यह है कि जिस प्रकार पानी की बूंदों को पकड़ कर कोई भी आकाश में नहीं चढ़ सकता। उसी तरह बिना राम का नाम लिए भी कोई व्यक्ति परमार्थ को प्राप्त नहीं कर सकता।

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तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार।

राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार॥

अपने इस दोहे में तुलसी जी का कहना है कि जिन लोगों की प्रभु श्री राम में ममता और सब संसार में समता है। साथ ही जिन लोग को किसी के प्रति राग, द्वेष, दोष और दुःख का भाव नहीं है। वह सभी भक्त श्री राम की कृपा से भवसागर से पार हो चुके हैं।

लोग मगन सब जोग हीं, जोग जायँ बिनु छेम।

त्यों तुलसी के भावगत, राम प्रेम बिनु नेम॥

इस दोहे का भाव है कि सभी लोग योग में अर्थात अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति करने में लगे हुए हैं। लेकिन प्राप्त वस्तु की रक्षा का उपाय किए बिना योग व्यर्थ है। इसी प्रकार श्री राम जी के प्रेम बिना सभी नियम व्यर्थ हैं।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।