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Tulsidas Ke Dohe: गोस्वामी तुलसीदास के ये 5 दोहे सिखाते हैं जीवन जीने का तरीका, जानें अर्थ सहित

Goswami Tulsidas तुलसीदास जी को रामचरितमानस के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन राम भक्ति के लिए समर्पित कर दिया था। तुलसीदास जी के जीवन से मानवमात्र को प्रेरणा मिल सकती है। साथ ही तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथों में ऐसी कई बातों का जिक्र किया है जिसका अनुसरण करने पर व्यक्ति सफलता को प्राप्त कर सकता है।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Thu, 21 Sep 2023 04:10 PM (IST)
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Tulsidas Ke Dohe गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे।

ई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Life Management Tips: तुलसीदास भगवान राम के प्रति अपनी महान भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। रामचरितमानस तुलसीदास की सबसे प्रमुख और लोकप्रिय कृति है। असल में महाकाव्य रामचरितमानस अवधी भाषा में संस्कृत रामायण का पुनर्लेखन ही है। आज हम आपको गोस्वामी तुलसीदास जी की कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जिनके द्वारा आप जीवन में नई ऊचाइयों को छू सकते हैं।

माता-पिता गुरु स्वामि सिख, सिर धरि करहिं सुभाय।

लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर, नतरु जनम जग जाये।।

इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता और गुरुओं के आदेश का पालन करता है उनका जन्म सिद्धि हो जाता है। इसके विपरित जो लोग माता-पिता या गुरु के आदेशों का पालन नहीं करते उनका जन्म लेना व्यर्थ है।

‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।

पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान।।

इस दोहे का अर्थ है कि हमारा शरीर एक खेत के समान है और मन इस खेत का किसान है। किसान जैसे बीज खेत में बोता है अंत में उसे वैसे ही फल मिलते हैं। इसी तरह अपने पाप या पुण्य का फल भी व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही मिलता है।

आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।

‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह।।

इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति के घर में जाने पर घर के लोग आपको देखकर प्रसन्न न हों और जिनकी आंखों में जरा भी स्नेह न हो, तो ऐसे घर में कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहां जाकर कितना ही लाभ क्यों न हो।

काम, क्रोध, मद, लोभकी, जौ लौं मन में खान।

तौं लौ पंडित मूरखौं, तुलसी एक समान।।

इस दोहे में तुलसी जी उन लोगों के बारे में बताते हैं जिनके मन में काम, गुस्सा, अहंकार और लालच भरा हुआ है। इस स्थिति में ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति एक ही समान है।

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।

बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

इस दोहे का अर्थ है कि मीठी वाणी बोलने से चारो ओर सुख का प्रकाश फैलता है। मीठी वाणी बोलकर किसी को भी सम्मोहित किया जा सकता है। इसलिए मनुष्य को कठोर और तीखी वाणी छोड़कर हमेशा मीठे वाणी ही बोलना चाहिए।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'