देश के सिद्ध संतों में एक उड़िया बाबा को प्राप्त थीं अन्नत सिद्धियां, अलौकिक था उनका स्वरूप
श्री उड़िया बाबा जी महाराज को बाल्यकाल से ही अनंत सिद्धियां प्राप्त थीं। मां अन्नपूर्णा उनको सिद्ध थीं। कैसा भी बीहड़ जंगल हो सभी लोगों के भोजन की व्यवस्था वह अपनी सिद्धि से कर दिया करते थे। जहां कहीं भी वे रहते बराबर भंडारों का तांता लगा रहता था। उन्होंने अनेक भक्तों को प्राण दान दिया। रोग मुक्त किया। आर्थिक संकटों से उवारा एवं अन्य आपत्तियों से रक्षा की।
पूर्णोत्तम दीक्षित। परम पूज्यपाद श्री उड़िया बाबाजी महाराज भारत के सिद्ध संतों में एक थे। उनका अद्भुत जीवन संपूर्ण समाज के लिए एक आदर्श रूप था। उनकी कृपा से असंख्य लोगों में भक्ति और ज्ञान की जागृति हुई। चैत्र कृष्ण चतुर्दशी रविवार, 7 अप्रैल 2024 को उनका 75वां निर्वाण दिवस है। आज भी उनकी परंपरा में परमपूज्य स्वामी श्री अखंडानंद सरस्वती एवं उनके कृपा पात्र जगदगुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती के आशीर्वाद से वर्तमान में श्री उड़िया बाबा आश्रम वृंदावन धाम में सुचारू रूप से चल रहा है।
उनके समकालीन संतों में पूज्य स्वामी श्री करपात्री जी महाराज, श्री हरि बाबा जी, श्रीश्री मां आनंदमई, स्वामी श्री गंगेश्वरानंद जी महाराज, स्वामी श्री शरणानंद जी व अन्यान्य महान संत उनके साथ वेदांत सत्संग करते रहे। श्री उड़िया बाबा जी के अनन्य भक्तों में जगदगुरु शंकराचार्य श्री शांतानंद सरस्वती, स्वामी श्री प्रबोधानंद सरस्वती, महर्षि कार्तिकेय जी, श्री पलटू बाबा जी, गोवर्धन के सिद्ध संत पंडित गया प्रसाद जी, स्वामी सिद्धेश्वराश्रम जी व अन्य संतों के नाम उल्लेखनीय हैं।
परम पूज्यपाद श्री उड़िया बाबा जी महाराज को बाल्यकाल से ही अनंत सिद्धियां प्राप्त थीं। मां अन्नपूर्णा उनको सिद्ध थीं। कैसा भी बीहड़ जंगल हो, सभी लोगों के भोजन की व्यवस्था वह अपनी सिद्धि से कर दिया करते थे। जहां कहीं भी वे रहते बराबर भंडारों का तांता लगा रहता था। उन्होंने अनेक भक्तों को प्राण दान दिया। रोग मुक्त किया। आर्थिक संकटों से उवारा एवं अन्य आपत्तियों से रक्षा की। भक्त उनका भगवान शिव के भाव से रुद्राभिषेक करते तो कभी कृष्ण रूप में उनकी झांकियां सजाते। कई उत्सवों पर भक्त इष्ट रूप में उनका पूजन- अर्चन करते थे। वह भक्तों के लिए सबकुछ करते हुए भी इस भाव से रहते थे कि जैसे उन्होंने कुछ नहीं किया।
उड़िया बाबाजी महाराज ने कामाख्या में मां जगदंबा की आराधना की तो मां साक्षात प्रकट हुईं और उनको एकाकार कर लिया। कालांतर में वह नित्य निरंतर समाधि में लीन रहते थे परमपूज्य स्वामी श्री अखंडानंद जी महाराज के कथनानुसार उड़िया बाबाजी का स्वरूप अलौकिक था। बाबा के विचार का उत्कर्ष, चित्त की समाधि, जीवन की प्रेममयता और रहने की सादगी पास रहकर देखने योग्य थी। भक्त लोग उनको सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान मानते थे। बहुतों के तो वह महज़ सद्गुरु ही नहीं बल्कि इष्टदेव भी थे। उन्होंने अपने निजी संस्मरण में एक अद्भुत प्रसंग का उल्लेख किया है।
एक दिन की बात है कि जब वह संन्यासी भी नहीं हुये थे, रात्रि के समय आश्रम की छत पर लेटे हुए थे। पास ही संन्यासी मित्र स्वामी निर्मल दासजी थे। दोनों ने निश्चय किया कि कहीं एकांत में चलकर साथ-साथ रहा जाए। प्रातः काल 4 बजे दोनों वेदांत के सत्संग में श्री उड़िया बाबाजी महाराज के पास गए तो वो बोले, तुम दोनों का एक साथ रहना ठीक नहीं है। उन्होंने (अखंडानंदजी) ने सोचा कि क्या महाराजजी ने मन की बात जान ली है ? यदि यह सही है तो इस समय ही वो मुझे खाने के लिए कोई चीज दें। तब मैं समझूंगा कि वह मेरे मन की बात जान गए हैं। इतने में तुरंत उड़िया बाबाजी ने एक सेवक को पुकार कर कहा, भइया इनको इस समय भूख लगी है। कुछ लाओ तो। सेवक कुछ खाद्य सामग्री ले आया और प्रसाद में बहुत से केले और पेड़े दिये। स्वामीजी कहते हैं कि वह लज्जा और संकोच से दब गये। श्री महाराज जी के विषय में ऐसी एक नहीं, अनेक घटनाएं जीवन में देखने में आयीं।
साधन काल में बाबा कभी लेट कर नहीं सोते थे। 10 वर्ष तक वो लेटे नहीं थे। बैठे रहते थे या चलते थे। कभी उनको दो-तीन घंटे से अधिक सोते हुए किसी ने नहीं देखा। जीवन पर्यंत उन्होंने कठोर साधना की। उनकी रहनी आश्चर्यमय थी।श्री उड़िया बाबाजी महाराज भक्तों और जिज्ञासुओं के साथ परमार्थ चर्चा करते थे। उनके श्रीमुख से जो वचानामृत निकलते थे, उनसे सभी को बहुत शांति का अनुभव होता था। उनके जीवन काल में ही गीता प्रेस गोरखपुर से उनके उपदेशों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ था। बाद में उनके आश्रम से श्री उड़िया बाबाजी के उपदेश प्रकाशित हुए।
श्री उड़िया बाबा जी महाराज बोलते थे कि दुर्गा पाठ में अलौकिक व असीम शक्ति है। दुर्गा पाठ से असंभव भी संभव हो जाता है। श्री दुर्गा सप्तशती के अर्गला, कीलक और कवच पाठ से सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। नाम जप पर उनका बहुत जोर रहता था। बाबा ने बताया था कि जप सबसे कठिन चीज है। ज्ञान और ध्यान से जप को वह कठिन समझते थे। वह कहते थे कि सब प्रकार की बातें छोड़कर निरंतर एक ही मंत्र का जप करते रहना साधारण बात नहीं है ।
जप में विलक्षण शक्ति होती है। मंत्र से भी बड़ा नाम होता है क्योंकि मंत्र जप में विधि का बंधन है जबकि नाम जप में विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है। जिनकी राम नाम में निष्ठा हो गई उसके लिए संसार में क्या काम बाकी रहा ? जब कृष्ण का नाम लो तो स्वयं को गोलोक में समझो। नाम जप से नित्य-निरंतर चमत्कार होते रहते हैं।वृंदावन में श्री उड़िया बाबाजी महाराज के श्रीकृष्ण आश्रम की बड़ी ख्याति थी। भक्तों, साधकों, संतों का वहां तांता लगा रहता था। जीवन में शुद्धि, वैराग्य और अभ्यास पर बाबा का बहुत जोर रहता था। उत्सवों में जब भीड़ होती थी तब बाबा को इस बात की बड़ी चिंता रहती थी कि कोई भूखा न रह जाए। वह कहते थे खाने का आनंद जीव का है और खिलाने का आनंद ईश्वर का है। ध्यान का मर्म बताते हुए बाबा कहते थे कि ध्यान के समय मुख्य रूप से अपने ईष्ट के स्वरूप का ही चिंतन करना चाहिए। यदि स्वरूप में चित्त स्थिर न हो तो ईश्वर की लीलाओं का गायन करना चाहिए। रोना हो तो इष्ट देव की किसी लीला का चिंतन करते हुए रोया करें। हंसना हो तो भी उसकी लीला का ही आश्रय लेकर हंसें। इस तरह ईष्टदेव का चिंतन करना ही ध्यान है।
परम पूज्य श्री उड़िया जी महाराज के निर्वाण के बाद उनके श्रीकृष्ण आश्रम में भक्तों ने उनका भव्य मंदिर बनाया। उसमें उनके अर्चा विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा हुई। उनकी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने पर लोगों ने तरह-तरह की अनुभव महसूस किये। किसी को उनके नेत्र हिलते दिखाई दिए तो किसी को उनके ह्रदय में धड़कन का अहसास हुआ। इससे भक्तों को ऐसा लगा कि बाबाजी जो हमें छोड़कर चले गए थे, वह वापस आ गए हैं। आज भी मंदिर में उनके दर्शन कर असीम कृपा की अनुभूति होती है। उनकी समाधि पर रोमांच का वातावरण रहता है और भक्तों को विलक्षण अनुभव होते हैं।
श्री उड़िया बाबा के आश्रम के सामने उनके अभिन्न रूप स्वामी अखंडानंदजी महाराज के आश्रम में भी नित्य कृपा बरसती रहती है और नित्य वेदांत, सत्संग, कथा, संतों की सेवा से भक्तों को परमाश्रय प्राप्त होता है।ऐसे परम पूज्यपाद श्री उड़िया बाबाजी महाराज के चरणों में कोटि-कोटि नमन। उनके 75वें निर्वाण महोत्सव पर असीम श्रद्धांजलि।सदैव प्रभुपदाश्रितपूर्णोत्तम दीक्षित (लेखक सुप्रसिद्ध अध्यात्मवेत्ता एवं संत हैं)