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Upnayan Sanskar: इस संस्कार से बल, ऊर्जा और तेज की होती है प्राप्ति, जानें क्या है इसका महत्व

Upnayan Sanskar हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार। इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sat, 12 Sep 2020 02:15 PM (IST)
Upnayan Sanskar: इस संस्कार से बल, ऊर्जा और तेज की होती है प्राप्ति, जानें क्या है इसका महत्व
Upnayan Sanskar: हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार। इसे यज्ञोपवित या जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है। उप यानी पानस और नयन यानी ले जाना अर्थात् गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। प्राचीन काल में इसकी बहुत ज्यादा मान्यता थी। वर्तमान की बात करें तो आज भी यह परंपरा कायम है। लोग आज भी जनेऊ संस्कार करते हैं। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन सूत्र तीन देवता के प्रतीक हैं यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश। यह संस्कार करने से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज की प्राप्ति होती है। यही नहीं, शिशु में आध्यात्मिक भाव जागृत होता है। आइए ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र से जानते हैं कि इस संस्कार का महत्व क्या है और यह संस्कार कब किया जाता है।

उपनयन संस्कार का महत्व: इस संस्कार से द्विजत्व की प्राप्ति होती है। शास्त्रों तथा पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि इस संस्कार के द्वारा ब्राह्मण-क्षत्रिय और वैश्य का द्वितीय जन्म होता है। विधिवत् यज्ञोपवीत धारण करना इस संस्कार का मुख्य अङ्ग है। इस संस्कार के द्वारा अपने आत्यन्तिक कल्याण के लिए वेदाध्ययन तथा गायत्री जप और श्रौत-स्मार्त आदि कर्म करने का अधिकार प्राप्त होता है। शास्त्र विधि से उपनयन-संस्कार हो जाने पर गुरु बालक के कंधों तथा हृदय का स्पर्श करते हुए कहता है

मम व्रते ते हृदयं दधामि मम चित्तमनुचित्तं ते अस्तु । मम वाचमेकमना जुषस्व प्रजापतिष्ट्वा नियुनक्तु मह्यम्॥

अर्थात् 'मैं वैदिक तथा लौकिक शास्त्रों के ज्ञान कराने वाले वेदव्रत तथा विद्याव्रत-इन दो व्रतों को तुम्हारे हृदयमें स्थापित कर रहा हूं। तुम्हारा चित्त-मन या अन्तःकरण मेरे अन्तःकरण के ज्ञान मार्ग में अनुसरण करता रहे अर्थात् जिस प्रकार मैं तुम्हें उपदेश करता रहूं, उसे तुम्हारा चित्त ग्रहण करता चले। मेरी बातों को तुम एकाग्र-मनसे समाहित होकर सुनो और ग्रहण करो। प्रजापति ब्रह्मा एवं बुद्धि-विद्या के स्वामी बृहस्पति तुम्हें मेरी विद्याओं से संयुक्त करें।' इसी प्रकार वेदाध्ययन के साथ-साथ गुरुद्वारा बालक (वटु) को कई उपदेश प्रदान किए जाते हैं। प्राचीन काल में केवल वाणी से ही ये शिक्षाएं नहीं दी जाती थीं, प्रत्युत गुरुजन तत्परतापूर्वक शिष्यों से पालन भी करवाते थे।

कब किया जाता है उपनयन संस्कार: यह संस्कार कर्णछेदन संस्कार के बाद किया जाता है। शास्त्रानुसार यह संस्कार ब्राह्मण वर्ण के जातकों का आठवें वर्ष में, क्षत्रिय जातकों का ग्यारहवें और वैश्य जातकों का बारहवें वर्ष में किया जाता था। शूद्र वर्ण व कन्याओं का यह संस्कार नहीं होता था क्योंकि ये इस संस्कार के अधिकारी नहीं माने जाते थे। मान्यता है कि अगर उपनयन संस्कार अधिकतम निर्धारित आयु तक न किया जाए तो जातकों को व्रात्य कहा जाता और समाज में इसे निंदनीय भी माना जाता है।