Vaishakh Amavasya 2024: पितरों का तर्पण करते समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति
गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से सुख सौभाग्य आय और वंश में वृद्धि होती है। ज्योतिषियों की मानें तो पितरों के अप्रसन्न होने पर पितृ दोष लगता है। इस दोष से युक्त व्यक्ति को जीवन में विषम परिस्थिति से गुजरना पड़ता है। साथ ही परिवार में दुर्घटना की संभावना बनी रहती है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 07 May 2024 09:00 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vaishakh Amavasya 2024: सनातन धर्म में अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने का विधान है। इस दिन स्नान-ध्यान के बाद व्यक्ति विशेष अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। इसके बाद आर्थिक स्थिति के अनुसार दान करते हैं। गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से सुख, सौभाग्य, आय और वंश में वृद्धि होती है। ज्योतिषियों की मानें तो पितरों के अप्रसन्न होने पर पितृ दोष लगता है। इस दोष से युक्त व्यक्ति को जीवन में विषम परिस्थिति से गुजरना पड़ता है। साथ ही परिवार में दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। अतः नियमित रूप से पितरों की पूजा करनी चाहिए। अगर आप भी पितृ दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो अमावस्या तिथि पर स्नान-ध्यान के बाद पितरों का तर्पण करें। साथ ही तर्पण करते समय इस स्तोत्र का पाठ करें।
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पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा । सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा । तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् । अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च । योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् । अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।