महर्षि वाल्मीकि भारत के महान ऋषियों में से एक हैं जिन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की थी। यह महाकाव्य संस्कृत में लिखी गई। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विम मास की पूर्णिमा तिथि को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल यह दिन गुरुवार 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी। वहीं इस दिन भगवान राम की पूजा का भी विशेष महत्व है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वाल्मीकि जयंती का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इसे महर्षि वाल्मीकि की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने महान हिंदू महाकाव्य रामायण लिखा था। महर्षि को रामायण के सबसे पुराने संस्करण के लेखक के रूप में लोग हमेशा याद करते हैं। साहित्य और अध्यात्म में उनके योगदान ने उन्हें एक प्रिय व्यक्ति बना दिया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस मौके (Valmiki Jayanti 2024) पर महर्षि का ध्यान करना चाहिए और भगवान राम की विधिवत पूजा करनी चाहिए।
रामायण व उनकी चौपाई का पाठ करना चाहिए। फिर
श्रीराम चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके बाद आरती से पूजा समाप्त करनी चाहिए। इससे घर में सुख और शांति बनी रहती है। साथ ही घर में बरकत आती है।
।।रामायण चौपाई।।
बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।पारस परस कुघात सुहाई॥
।।श्रीराम चालीसा।।
।।दोहा।।आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनंवैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणंबाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं।।चौपाई।।श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।ता सम भक्त और नहिं होई ॥ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥
तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।दीनन के हो सदा सहाई ॥ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥चारिउ वेद भरत हैं साखी ।तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥गुण गावत शारद मन माहीं ।सुरपति ताको पार न पाहीं ॥नाम तुम्हार लेत जो कोई ।ता सम धन्य और नहिं होई ॥राम नाम है अपरम्पारा ।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।महि को भार शीश पर धारा ॥फूल समान रहत सो भारा ।पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।तासों कबहुँ न रण में हारो ॥नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।
सदा करत सन्तन रखवारी ॥ताते रण जीते नहिं कोई ।युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥महा लक्ष्मी धर अवतारा ।सब विधि करत पाप को छारा ॥सीता राम पुनीता गायो ।भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥घट सों प्रकट भई सो आई ।जाको देखत चन्द्र लजाई ॥सो तुमरे नित पांव पलोटत ।नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥सिद्धि अठारह मंगल कारी ।सो तुम पर जावै बलिहारी ॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई ।सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥इच्छा ते कोटिन संसारा ।रचत न लागत पल की बारा ॥जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥सुनहु राम तुम तात हमारे ।तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥तुमहिं देव कुल देव हमारे ।तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥
रामा आत्मा पोषण हारे ।जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।सो निश्चय चारों फल पावै ॥सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।नमो नमो जय जापति भूपा ॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।नाम तुम्हार हरत संतापा ॥सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥याको पाठ करे जो कोई ।ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥आवागमन मिटै तिहि केरा ।सत्य वचन माने शिव मेरा ॥और आस मन में जो ल्यावै ।तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥साग पत्र सो भोग लगावै ।
सो नर सकल सिद्धता पावै ॥अन्त समय रघुबर पुर जाई ।जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥श्री हरि दास कहै अरु गावै ।सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥।।दोहा।।सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥
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