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Varaha Jayanti 2020: आज है वराह जयंती, दैत्य हिरण्याक्ष का वध करने इस रूप में अवतरित हुए थे विष्णु जी

Varaha Jayanti 2020 भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथाएं तो हम सभी ने सुनी हैं। उन्हीं में से तीसरे अवतार हैं वराह।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 21 Aug 2020 06:30 AM (IST)
Varaha Jayanti 2020: आज है वराह जयंती, दैत्य हिरण्याक्ष का वध करने इस रूप में अवतरित हुए थे विष्णु जी
Varaha Jayanti 2020: श्रीमदभगवद्गीता में एक श्लोक का वर्णन किया गया है, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। इसका अर्थ है जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की विजय होने लगती है तब-तब मैं स्वयं जन्म लेता हूं। भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथाएं तो हम सभी ने सुनी हैं। उन्हीं में से तीसरे अवतार हैं वराह। मान्यता है कि वराह भाद्रपद यानि भादों मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को अवरतरित हुए थे, जो कि आज है, ऐसे में आज के दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। आइए पढ़ते हैं वराह अवतार की कथा।

क्यों अवरतिरत हुए थे वराह:

विष्णु जी ने वराह के रूप में तीसरा अवतार लिया था। पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप पत्नी एवं दैत्य माता दिति के गर्भ से हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु का जन्म हुआ था। इनका जन्म सौ वर्षों के गर्भ के बाद हुआ था ऐसे में जन्म लेते ही इनका रूप बड़ गया था। ये विशालकाय हो गए थे। जैसे ही इनका जन्म हुआ सभी लोगों में अंधेरा छाने लग गया था। इसी दौरान हिरण्यकशिपु में अमर एवं अजेय होने की इच्छा जागृत हुई। उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वो देव, दानव, मानव किसी से भी पराजित नहीं होगा और मारा भी नहीं जाएगा। इस वरदान के बाद से ही हिरण्यकशिपु के अत्याचार बढ़ने लगे। कुछ ही समय में उसने सभी लोगों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इन सब में हिरण्याक्ष भी उसकी मदद कर रहा था। आज्ञा का पालन करते हुए शत्रुओं का नाश करने लगा।

एक बार हिरण्याक्ष ने वरूण देव को युद्ध के लिए ललकारा। लेकिन उन्होंने बेहद ही विनम्रता से उत्तर दिया कि उनमें इतनी शक्ति और साहस नहीं है कि वो उनसे युद्ध कर पाए। केवल भगवान विष्णु ही हैं जो तुम्हें युद्ध में पराजित कर सकते हैं। यह सुनकर वो भगवान विष्णु की खोज में निकल गया। उसे नारदमुनि से सूचना मिली की विष्णु जी ने वराह का अवतार लिया है। वो रसातल से पृथ्वी को समुद्र से ऊपर ला रहे हैं। उनकी खोज में वो समुद्र के नीचे रसातल पहुंच गया। वहां का दृश्य देख वो अचंभित रह गया। उसने देखा कि वराह ने अपने दांतों में धरती दबा रखी है और उसे उठाए चले जा रहे हैं। भगवान विष्णु का युद्ध करने के लिए उसने ललकारा। लेकिन वह क्रोधित नहीं हुए और शांत चित के साथ आगे बढ़ते गए। उसने बहुत प्रयास किया कि वो विष्णु जी को उकासा पाए लेकन ऐसा न हो पाया।

भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह ने अपना काम पूरा कर दिया था। पृथ्वी को स्थापित करने के बाद उन्होंने हिरण्याक्ष से कहा कि क्या वो केवल बातें ही करता है या फिर लड़ने का साहस भी है। उन्होंने कहा, मैं तुम्हारे सामने हूं, तुम मुझ पर प्रहार क्यों नहीं करते। इतना कहते ही वो बिना सोच-विचार किए युद्ध के लिए आगे बढ़ गया। क्रोधित हिरण्याक्ष अपने त्रिशूल से भगवान विष्णु पर आक्रमण करने लगा। देखते ही देखते वराह ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके त्रिशूल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अपने हथियारों को टूटता देख वो मायावी रूप लेने लगा। वहीं, वराह को भ्रमित करने की भी कोशिश की। हिरण्याक्ष लगातार विफल हो रहा था और भगवान विष्णु ने उसका संहार किया। उनके हाथों मोक्ष पाकर हरिण्याक्ष सीधा बैंकुठ लोक गमन कर गया।

मान्यता है कि विष्णु जी ने हिरण्याक्ष के वध के लिए ही वराह के रूप में अवतार लिया था। जिस दिन विष्णु जी इस रूप में अवतरित हुए थए उस दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसी के चलते इस दिन वराह जयंती मनाई जाती है।