Vidur Niti: महात्मा विदुर से जानिए किस तरह का व्यवहार होता है व्यक्ति का आभूषण
Vidur Niti महात्मा विदुर को महाभारत का महत्वपूर्ण अंश माना जाता है। उन्होंने अपनी नीतियों के माध्यम से कई लोगों का मार्गदर्शन किया था और इन सभी नीतियों का उपयोग आज भी किया जाता है। विदुर नीति से जानिए किस तरह का व्यवहार होता है व्यक्ति का आभूषण?
नई दिल्ली, Vidur Niti: महात्मा विदुर को महाभारत काल के सबसे ज्ञानी पुरुषों में गिना जाता है। उन्होंने जिस तरह अपने नीतियों के माध्यम से मनुष्य का मार्गदर्शन किया उसे आज भी स्मरण किया जाता है। विदुर नीति उस वार्तालाप का एक अंग है जो महात्मा विदुर (Mahatma Vidur Niti) और धृतराष्ट्र के बीच हुई थी। विदुर नीति के अनुसार व्यक्ति का चरित्र ही उसके भविष्य का चित्र होता है। इस लिए व्यक्ति अगर अपना चरित्र अच्छा रखता है तो उसे समाज और देश में ख्याति प्राप्त होती है। साथ ही वह सभी प्रकार की समस्याओं से दूर कर देता है। आइए जानते हैं किस तरह व्यवहार व्यक्ति का आभूषण होता है।
विदुर नीति से जानिए क्या हैं जीवन का मूल मंत्र (Vidur Niti Teaching)
सोऽस्य दोषो न मन्तव्यः क्षमा हि परमं बलम्।
क्षमा गुणों ह्यशक्तानां शक्तानां भूषणं क्षमा ।।
विदुर नीति के अनुसार वीरों का बल क्षमा करना है। क्षमा करने की प्रवृत्ति कमजोर को भी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बना देती है। वीरों के लिए तो यह आभूषण ही है। इसलिए अपने गुण में क्षमा को अधिक महत्व दें। ऐसा करने से शत्रु भी आपके दोस्त बन जाएंगे और हर कदम पर आपका साथ देंगे।
एको धर्म: परम श्रेय: क्षमैका शान्तिरुक्तमा।
विद्वैका परमा तृप्तिरहिंसैका सुखावहा ।।
महात्मा विदुर इस श्लोक के माध्यम से बता रहे हैं कि धर्म का मार्ग ही सबसे उत्तम मार्ग है, क्षमा करना ही शांति की अनुभूति करने का एकमात्र उपाय है। केवल ज्ञान ही परम संतोष पहुंचाती है और वहीं अहिंसा सुख का सबसे अच्छा माध्यम है। इसलिए इन सभी गुणों से ही व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता है और उसकी सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
द्वाविमौ पुरुषौ राजन स्वर्गस्योपरि तिष्ठत: ।
प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ।।
विदुर नीति के इस श्लोक में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति शक्तिशाली होने के बावजूद भी क्षमाशील होता और निर्धन होने के बावजूद भी दानवीर होता है। ऐसे प्रवृति के व्यक्ति को स्वर्ग से भी ऊपर स्थान प्राप्त होता है। इसलिए क्षमा को अपनी प्रवृत्ति में जरूर शामिल करें और दान करने की भावना को कभी खुद से अलग ना होने दें।
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