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Vinayak Chaturthi Significance: जानें विनायक चतुर्थी का महत्व और पढ़ें यह पौराणिक व्रत कथा

Vinayak Chaturthi Significance आज विनायक चतुर्थी है। आज के दिन गणेश जी की दो बार पूजा की जाती है। एक बार दोपहर में और एक बार मध्याह्न में।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 20 Sep 2020 02:21 PM (IST)
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Vinayak Chaturthi Significance: जानें विनायक चतुर्थी का महत्व और पढ़ें यह पौराणिक व्रत कथा
Vinayak Chaturthi Significance: आज विनायक चतुर्थी है। आज के दिन गणेश जी की दो बार पूजा की जाती है। एक बार दोपहर में और एक बार मध्याह्न में। पुराणों के अनुसार, अगर विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाए तो इससे व्यक्ति के कार्य सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। वैसे तो चतुर्थी हर माह आती है लेकिन अधिक आश्विन मास की चतुर्थी ति​थि है। इस मास के अधिपति विष्णु जी है लेकिन आज के दिन गणेश जी की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं विनायक चतुर्थी का महत्व।

विनायक चतुर्थी का महत्व:

विनायत चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन के सभी दुख खत्म हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। गणेश जी इस दिन पूजा और व्रत करने वालों के सभी सभी कार्य पूरे कराते हैं। साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूरी करते हैं। व्यक्ति के जीवन पर आ रहे संकट भी दूर हो जाते हैं। अगर इस व्रत को विधि पूर्वक किया जाए तो व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती हैं।

विनायक चतुर्थी की कथा:

एक बार माता पार्वती शिवजी के साथ चौपड़ खेल रही थीं। उन्हें खेल खेलने में बड़ी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। वो ये सोच रहे थे कि आखिर इस खेल की हार-जीत का फैसला कौन करेगा। इसके लिए घास-फूस से एक बालक बनाया गया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की गई। साथ ही उस बालक पर हार-जीत का दारोमदार सौंपा गया। खेल में तीन बार पार्वती जी जीतीं। लेकिन बालक ने गलतफहमी ने महादेव को विजेता बता दिया। इस पर पार्वती जी को बहुत गुस्सा आया और उस बालक को कीचड़ में रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी। तब उन्होंने कहा कि एक वर्ष बाद यहां नागकन्याएं आएंगी। जैसे वो कहें उसी के अनुसार गणेश चतुर्थी का व्रत करना। इससे तुम्हारे कष्ट दूर हो जाएंगे।

इसके बाद उस बालक ने गणेश जी की उपासना की। उनकी भक्ति देख गणेश जी बेहद प्रसन्न हो गए। गणेश जी ने उन्हें अपने माता-पिता यानी भगवान शिव-पार्वती के पास जाने का वरदान दिया। वह बालक कैलाश पहुंच गया। शिवजी ने भी पार्वती जी को मनाने के लिए 21 दिन तक गणेश जी का व्रत किया। इसके बाद पार्वती जी मान गईं। इसके बाद अपने पुत्र से मिलने के लिए पार्वती जी ने भी 21 दिन तक व्रत किया। मान्यता है कि वह बालक कार्तिकेय थे।