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Vishu Kani 2024: कब है विशु कानी ? यहां जानिए मलयालम नव वर्ष से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

विशु कानी (Vishu Kani 2024) का पर्व मलयालम नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा होती है। यह त्योहार आशा और खुशी का भी प्रतीक है जो प्राचीन परंपराओं से समृद्ध है। इस साल यह 14 अप्रैल 2024 को मनाया जाएगा तो आइए इस विशेष दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं -

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 14 Apr 2024 09:06 AM (IST)
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Vishu Kani 2024: ऐसे मनाया जाता है विशु कानी उत्सव
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vishu Kani 2024: विशु कानी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो केरल और भारत के अन्य दक्षिणी राज्यों जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मलयालम नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा होती है। यह त्योहार आशा और खुशी का भी प्रतीक है, जो प्राचीन परंपराओं से समृद्ध है। इस साल यह 14 अप्रैल, 2024 को मनाया जाएगा।

कब है विशु कानी ?

'विशु' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'विउवम' से हुई है, जिसका हिंदी मतलब 'बराबर' है। यह दिन बसंत के दौरान दिन और रात के बीच संतुलन का प्रतीक है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार, मेदाम महीने का पहला दिन है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अप्रैल के मध्य में पड़ता है। साल 2024 में विशु 14 अप्रैल दिन रविवार को मनाया जाएगा।

ऐसे मनाया जाता है विशु कानी उत्सव

  • विशु कानी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें आने वाले समृद्ध साल के लिए सूर्योदय के समय शुभ वस्तुओं को देखना शामिल है।
  • विशु से एक दिन पहले परिवार के सभी लोग शुभ चीजों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें सुबह उठकर देखते हैं।
  • इस दिन भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
  • विशु कानी में आमतौर पर नारियल, सुपारी, पीले फूल, सिक्के, मुद्रा नोट, एक सफेद धोती, चावल, नींबू, ककड़ी, कटहल, एक दर्पण, काजल और एक पवित्र पुस्तक शामिल है।
  • सूर्योदय के दौरान परिवार के सदस्य सबसे पहले विशु कानी को देखते हैं।
  • यह पर्व पूरे साल समृद्धि, सौभाग्य और धन को आमंत्रित करता है।
  • इस पूजा के दौरान रामायण का पाठ किया जाता है।
  • इस दिन लोग मंदिरों में जाकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

श्री हरि विष्णु पूजन मंत्र

  • ''ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

    ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि''।

  • ''ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते''।।
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