क्या होता है निर्वाण लाडू और कब भगवान महावीर को चढ़ाया जाता है?
Lord Mahavir इतिहासकारों की मानें तो भगवान महावीर ने अशोक वृक्ष के नीचे दीक्षा ग्रहण की थी। उस समय उनके पास केवल पहने हुए वस्त्र थे। इस वस्त्र को एक वर्ष तक भगवान महावीर ने धारण किया। इसके बाद पहने हुए वस्त्र का भी त्याग कर दिया। उनके तप को एक ग्वाला ने भंग यानी तोड़ने की कोशिश की थी।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 25 Jun 2024 09:19 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महावीर जयंती मनाई जाती है। इस दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की पूजा एवं उपासना की जाती है। भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व विश्व के पहले गणराज्य वैशाली के कुंडग्राम में एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ था जो इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा थे। वहीं, माता जी का रानी त्रिशला था।
इतिहासकारों की मानें तो भगवान महावीर के जन्म के बाद राज्य में अकल्पनीय उन्नति हुई। साथ ही राज्य का व्यापक विस्तार हुआ। प्रजा में संतोष की लहर थी। इसके लिए भगवान महावीर का नाम वर्धमान रखा गया। भगवान महावीर को कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। अतः कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर भगवान महावीर की पूजा की जाती है। साथ ही पूजा के समय भगवान महावीर का विशेष मिठाई अर्पित की जाती है। इस मिठाई को निर्वाण लाडू कहा जाता है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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भगवान महावीर की जीवनी
इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि भगवान महावीर बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध के समकालीन थे। भगवान महावीर का जन्म जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण के बाद हुआ था। भगवान महावीर बाल्यावस्था से बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आध्यात्म में वर्धमान की गहरी रुचि थी। इसके चलते भगवान महावीर ने महज 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया।
हालांकि, संन्यास को स्वीकार करने से पहले भगवान महावीर का विवाह यशोदा से हुआ था। तत्कालीन समय में यशोदा के गर्भ से प्रियदर्शिनी का जन्म हुआ था। गृह त्याग के बाद उन्होंने दीक्षा प्राप्त की। इसके बाद लगातार 12 वर्षों तक कठिन तप किया। तब जाकर भगवान महावीर को ज्ञान की प्राप्ति हुई। कई इतिहासकारों की मानें तो भगवान महावीर ने अशोक वृक्ष के नीचे दीक्षा ग्रहण की थी। उस समय उनके पास पहने हुए वस्त्र थे। इस वस्त्र को एक वर्ष तक भगवान महावीर ने धारण किया। इसके पश्चात, भगवान महावीर ने वस्त्र का भी त्याग कर दिया।
उनके तप के समय एक बार ग्वाला ने गुस्ताखी (धृष्टता) करने की कोशिश की थी। उस समय स्वर्ग नरेश इंद्र ने मध्यस्थता कर ग्वाला को रोका। स्वर्ग इंद्र को देख ग्वाला भाग खड़ा हुआ। तब इंद्र देव ने सुरक्षा देने की बात की। हालांकि, भगवान महावीर ने इंद्र देव के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि कालांतर से वर्तमान समय तक किसी ऋषि-मुनि ने दैवीय संरक्षण में ज्ञान की प्राप्ति नहीं की है। अतः आप मेरी चिंता बिल्कुल न करें। कालांतर में भगवान महावीर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान महावीर ने पांच व्रत का उपदेश दिया है। ये ब्रह्मचर्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और सत्य हैं। मान्यता है कि भगवान महावीर के पांच व्रत को पूर्णतया मानने वाले को महाव्रत कहा जाता है।