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क्‍या है अमरनाथ की कथा क्यों जो भी इस अमर कथा को सुन लेता वह अमर हो जाता है

जब मुझे आपको ही प्राप्त करना है तो फिर मेरी यह तपस्या क्यूं? मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यूं? और आपके अमर होने का कारण व रहस्य क्या है?

By Preeti jhaEdited By: Updated: Sat, 02 Jul 2016 10:54 AM (IST)
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पुराणों में संस्मरण है कि एक बार मां पार्वती ने बड़ी उत्सुकता के साथ बाबा श्री विश्र्वनाथ देवाधिदेव महादेव से यह प्रश्न किया कि ऐसा क्यूं होता है कि आप अजर अमर हैं और मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर फिर से वर्षो की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करना होता है।

जब मुझे आपको ही प्राप्त करना है तो फिर मेरी यह तपस्या क्यूं? मेरी इतनी कठोर परीक्षा क्यूं? और आपके कंठ में पड़ी यह परमुण्ड माता तथा आपके अमर होने का कारण व रहस्य क्या है? महाकाल ने पहले तो माता को यह गूढ़ रहस्य बताना उचित नहीं समझा परन्तु माता की स्त्री हठ के आगे उनकी एक न चली। तब अन्त्वोगत्व्या महादेव शिव को मां पार्वती को अपनी साधना की अमर कथा, जिसे हम अमरत्व की कथा के रूप में जानते हैं, इसी परम पावन अमरनाथ की गुफा में कही। भगवान शंकर ने मां पार्वती जी से एकान्त व गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा, जिससे कि अमर कथा को कोई भी जीव, व्यक्ति और यहां तक कोई पशु-पक्षी न सुन लें, क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता, वह अमर हो जाता। इस कारण शिव जी मां पार्वती को लेकर किसी गुप्त स्थान की ओर चल पड़े। सबसे पहले भगवान भोले ने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम पर छोड़ दिया, इसलिए बाबा अमरनाथ की यात्रा पहलगाम से शुरू करने का तात्पर्य या बोध होता है।

आगे चलने पर शिव जी ने अपनी जटाओं में चन्द्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया और गंगा जी को पंचतरणी में और कंठाभूषण सर्पो को शेषनाग पर छोड़ दिया। इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। आगे की यात्रा में अगला पड़ाव गणेश टाप पड़ता है, इस स्थान पर बाबा ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था, जिसको महागुणा का पर्वत भी कहा जाता है। पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया। इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया। इसके साथ मां पार्वती संग एक गुप्त गुफा में प्रवेश कर गए। कोई व्यक्ति, पशु या पक्षी गुफा के अंदर प्रवेश कर अमर कथा को न सुने, इसलिए शिव जी ने अपने चमत्कार से गुफा के चारों ओर आग प्र”वलित कर दी। फिर शिव जी ने जीवन की अमर कथा मां पार्वती को सुनाना शुरू किया। कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गई, जिसका शिव जी को पता नहीं चला।

भगवान शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। इस समय दो सफेद कबूतर श्री शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे, शिव जी को लग रहा था कि मां पार्वती कथा सुन रही है और बीच-बीच में हुंकार भर रही हैं। इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली। कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती मां की ओर गया जो सो रही थी। शिव जी ने सोचा कि अगर पार्वती सो रही है, तब इसे सुन कौन रहा था। तब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी। महादेव शिव कबूतरों पर क्रोधित हुए और उन्हें मारने के लिए तत्पर हुए। इस पर कबूतरों ने शिव जी से कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है, यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आर्शीवाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे।

अत: यह कबूतर का जोड़ा अजय अमर हो गया। माना जाता है कि आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होता है। इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा पड़ा। जहां गुफा के अंदर भगवान शंकर बर्फ के निर्मित शिवलिंग के रूप में विराजमान है। पवित्र गुफा में मां पार्वती के अलावा गणेश के भी अलग से बर्फ से निर्मित प्रतिरूपों के दर्शन किए जा सकते हैं।

इस पवित्र गुफा की खोज के बारे में पुराणों में भी एक कथा प्रचलित है कि एक बार एक गड़रिये को एक साधू मिला, जिसने उस गड़रिये को कोयले से भरी एक बोरी दी जिसे गड़रिया अपने कंधे पर लाद कर अपने घर को चल दिया। घर आकर उसने बोरी खोली तो वह आश्चर्यचकित हुआ क्योंकि कोयले की बोरी अब सोने के सिक्कों की हो चुकी थी। इसके बाद वह गड़रिया साधू से मिलने व धन्यवाद देने के लिए उसी स्थान पर गया जहां पर साधू से मिला था। परन्तु वहां उसे साधू नहीं मिला बल्कि उसे ठीक उसी जगह एक गुफा दिखाई दी। गड़रिया जैसे ही उस गुफा के अंदर गया तो उसने वहां पर देखा कि भगवान भोले शंकर बर्फ के बने शिवलिंग के आकार में स्थापित थे। उसने वापस आकर सबको यह कहानी बताई और इस तरह भोले बाबा की पवित्र अमरनाथ गुफा की खोज हुई।

धीरे-धीरे करते दूर-दूर से भी लोग पवित्र गुफा एवं बाबा के दर्शन के लिए पहुंचने लगे, जो आज एक प्रतिवर्ष यात्रा के रूप में जारी है।