Dhritarashtra के इस पुत्र ने पांडवों की तरफ से लड़ा था युद्ध, जानें दुर्योधन के सभी भाइयों के नाम
जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध (Mahabharat War) को टालने के लिए धृतराष्ट्र के श्रेष्ठ पुत्र दुर्योधन से अनुरोध किया था। हालांकि दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण के शांति संदेश को ठुकरा दिया था। इस समय दुर्योधन ने बांके बिहारी कृष्ण कन्हैया को अपमानित भी किया था। 18 दिनों के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को परास्त किया था।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 22 Sep 2024 09:06 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में महाभारत युद्ध को सबसे बड़ा और भीषण युद्ध माना जाता है। इस युद्ध के कई कारण थे। हालांकि, खलनायक केवल और केवल धृतराष्ट्र थे। इतिहासकारों की मानें तो धृतराष्ट्र चाहते तो महाभारत युद्ध को रोक सकते थे, लेकिन पुत्र मोह के चलते कौरव नरेश ऐसा नहीं कर सके थे। इसका खामियाजा कौरवों और पांडवों को चुकाना पड़ा था। दोनों के मध्य 18 दिनों तक भयंकर युद्ध चला। इसमें पांडवों को छोड़कर केवल भगवान श्रीकृष्ण, सत्यकी, अश्वत्थामा, कृपा, युयुत्सु और कृतवर्मा जीवित ही रह सके थे। इस युद्ध में दोनों तरफ के कई योद्धा मारे गए थे। धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु ने सत्य का साथ दिया था और महाभारत युद्ध में पांडवों के लिए लड़ा था। इस वजह से युयुत्सु को विजयश्री प्राप्त हुई थी। लेकिन क्या आपको पता है कि धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के क्या नाम थे और क्यों युयुत्सु ने कौरवों का साथ नहीं दिया था ? आइए जानते हैं-
इतिहासकारों की मानें तो हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से हुआ था। धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे। उनकी दृष्टि बाधित थी। यह जान भीष्म पितामह ने धोखे में रखकर गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कराया था। जब गांधारी को यह जानकारी हुई, तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। महाभारत काव्य में गांधारी विवाह की विस्तृत जानकारी है। सत्यवती अपने पुत्र विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद वेदव्यास जी के पास गई और उनसे वंश वृद्धि हेतु विचित्रवीर्य की धर्म पत्नियों को वरदान देने की याचना की।
धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे
वहीं, भीष्म पितामह पूर्व से विवाह न करने का निश्चय कर लिया था। यह जान वेदव्यास जी ने अंबिका और अंबालिका को पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दिया। अंबिका को जन्मान्ध धृतराष्ट्र पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वहीं, अंबालिका को पाण्डु पुत्र रूप में प्राप्त हुआ। धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे। इसके लिए पाण्डु को राजा बना दिया गया। यह जान धृतराष्ट्र पांडु से द्वेष भावना रखने लगे थे। कालांतर में पाण्डु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र दुर्योधन को हस्तिनापुर का नरेश बना दिया था। धृतराष्ट्र के पुत्र मोह के चलते ही महाभारत युद्ध हुआ था।
कैसे हुआ युयुत्सु का जन्म?
गांधारी के पुत्रों को कौरव कहा जाता था। हालांकि, कौरव धृतराष्ट्र के पुत्र नहीं थे, बल्कि गांधारी को वेदव्यास द्वारा प्राप्त वरदान से हुए थे। गांधारी की सेवा से प्रसन्न होकर वेदव्यास जी ने उन्हें सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान दिया था। कालांतर में वेदव्यास के वरदान से गांधारी को 99 पुत्रों एवं 1 पुत्री की प्राप्ति हुई। इनमें सबसे बड़ा दुर्योधन था। इसके बाद दुशासन था। वहीं, बहन का नाम दुशाला था। इसके अलावा, कौरव को युयुत्सु नामक सौतेला भाई भी था। कहते हैं कि धृतराष्ट्र के दासी संग रतक्रिया से युयुत्सु की प्राप्ति हुई थी। इसके लिए युद्ध में कौरवों की मदद करने के बजाय युयुत्सु ने पांडवों की मदद की थी।धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के नाम
- दुर्योधन
- दुशासन
- दुस्सह
- दुश्शल
- जलसंध
- सम
- सह
- विंद
- अनुविंद
- दुद्र्धर्ष
- सुबाहु
- दुष्प्रधर्षण
- दुर्मुर्षण
- दुर्मुख
- दुष्कर्ण
- कर्ण
- विविंशति
- विकर्ण
- शल
- सत्व
- सुलोचन
- चित्र
- उपचित्र
- चित्राक्ष
- चारुचित्र
- शरासन
- दुर्मुद
- दुर्विगाह
- विवित्सु
- विकटानन
- ऊर्णनाभ
- सुनाभ
- नंद
- उपनंद
- चित्रबाण
- चित्रवर्मा
- सुवर्मा
- दुर्विमोचन
- आयोबाहु
- महाबाहु
- चित्रांग
- चित्रकुंडल
- भीमवेग
- भीमबल
- बलाकी
- बलवद्र्धन
- उग्रायुध
- सुषेण
- कुण्डधार
- महोदर
- चित्रायुध
- निषंगी
- पाशी
- वृंदारक
- दृढ़वर्मा
- दृढ़क्षत्र
- सोमकीर्ति
- अनूदर
- दृढ़संध
- जरासंध
- सत्यसंध
- सद:सुवाक
- उग्रश्रवा
- उग्रसेन
- सेनानी
- दुष्पराजय
- अपराजित
- कुण्डशायी
- विशालाक्ष
- दुराधर
- दृढ़हस्त
- सुहस्त
- बातवेग
- सुवर्चा
- आदित्यकेतु
- बह्वाशी
- नागदत्त
- अग्रयायी
- कवची
- क्रथन
- कुण्डी
- उग्र
- भीमरथ
- वीरबाहु
- अलोलुप
- अभय
- रौद्रकर्मा
- दृढऱथाश्रय
- अनाधृत्य
- कुण्डभेदी
- विरावी
- प्रमथ
- प्रमाथी
- दीर्घरोमा
- दीर्घबाहु
- महाबाहु
- व्यूढोरस्क
- कनकध्वज
- कुण्डाशी
- विरजा