Maa Lakshmi: कब और कैसे हुई धन की देवी की उत्पत्ति? जानें इससे जुड़ी कथा एवं महत्व
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि धन की देवी मां लक्ष्मी चार भुजाधारी हैं और कमल पर आसीन हैं। उनके दो हाथ में कमल है। तीसरा हाथ दान और चौथा हाथ वर मुद्रा में है। इसका आशय यह है कि मां लक्ष्मी की कृपा साधक पर दोनों हाथों से बरसती है। मां लक्ष्मी का अनुग्रह पाकर रंक भी राजा बन जाता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 13 May 2024 07:24 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Maa Lakshmi: सनातन धर्म में शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। मां लक्ष्मी को कई नामों से जाना जाता है। वहीं, मां लक्ष्मी के आठ रूपों की पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी अति चंचल हैं। एक स्थान पर अत्यधिक समय तक नहीं ठहर पाती हैं। सनातन शास्त्रों में कई बार मां लक्ष्मी के स्थान-प्रस्थान का वर्णन मिलता है। अतः ज्योतिष नियमित रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मां लक्ष्मी की उत्पत्ति कब, कहां, कैसे और क्यों हुई थी ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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मां लक्ष्मी का स्वरूप
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि मां लक्ष्मी चार भुजाधारी हैं और कमल पर आसीन हैं। उनके दो हाथ में कमल है। तीसरा हाथ दान और चौथा हाथ वर मुद्रा में है। इसका आशय यह है कि मां लक्ष्मी की कृपा साधक पर दोनों हाथों से बरसती है। मां लक्ष्मी का अनुग्रह पाकर रंक भी राजा बन जाता है। वहीं, गृह में मां लक्ष्मी का स्थायित्व होने से जातक को श्रीमान और लक्ष्मीवान भी कहा जाता है। जिन जातकों पर धन की देवी की कृपा बरसती है, उनके गृह यानी घर से दुख, दरिद्रता, अन्न और धन की कमी दूर हो जाती है।
स्वर्ग लोक से मां लक्ष्मी का प्रस्थान
सनातन शास्त्रों की मानें तो एक बार ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ महादेव के दर्शन हेतु शिवलोक जा रहे थे। उसी मार्ग में स्वर्ग नरेश इंद्र देव भी ऐरावत पर विराजमान होकर भ्रमण कर रहे थे। ऋषि दुर्वासा के मिलने पर स्वर्ग नरेश इंद्र ने शिष्टाचार पूर्वक प्रणाम किया। साथ ही कुशल मंगल जाना। स्वर्ग नरेश इंद्र के व्यवहार से ऋषि दुर्वासा अति प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रसन्नता में इंद्र देव को जगत के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा प्रदत्त दिव्य पुष्प अर्पित किया।उस समय स्वर्ग नरेश इंद्र ने दिव्य पुष्प को ऐरावत के मस्तक पर साज दिया। दिव्य पुष्प का स्पर्श पाकर ऐरावत तेजस्वी और ओजस्वी हो गया। तत्क्षण सब कुछ त्याग कर वन प्रस्थान कर गया। यह देख ऋषि दुर्वासा के क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने उसी क्षण इंद्र को श्रीविहीन होने का श्राप दे दिया। ऋषि दुर्वासा के श्राप से स्वर्गलोक लक्ष्मी विहीन हो गई। स्वर्गलोक का ऐश्वर्य खो गया। इसका लाभ उठाकर दैत्यों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में देवताओं की पराजय हुई। स्वर्ग नरेश इंद्र देव अन्य देवताओं के साथ ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। स्थिति से अवगत होकर ब्रह्मा जी ने देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी।