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Kalki Jayanti 2024: सावन महीने में कब है कल्कि जयंती ? नोट करें सही डेट एवं शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में कल्कि जयंती (Kalki Jayanti 2024) का विशेष महत्व है। यह पर्व हर वर्ष भगवान शिव के प्रिय महीने में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान कल्कि की श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। भगवान कल्कि की पूजा करने से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 31 Jul 2024 07:37 PM (IST)
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Lord Kalki: कल्कि जयंती का धार्मिक महत्व ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kalki Jayanti 2024: हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि जयंती (Kalki Jayanti Celebrations) मनाई जाती है। यह पर्व जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु के दसवें अवतार भगवान कल्कि की पूजा की जाती है। साथ ही जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के दुखों से छुटकारा पाने के लिए व्रत रखा जाता है। कल्कि पुराण में भगवान कल्कि के अवतार का विस्तारपूर्वक वर्णन है। जानकारों की मानें तो जब कलयुग में अधर्म की प्रधानता बढ़ जाएगी और धर्म का पतन होने लगेगा, उस समय धर्म स्थापना और असुरों के संहार हेतु भगवान कल्कि (Kalki Jayanti Significance) अवतरित होंगे। अत: हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर भगवान कल्कि की पूजा की जाती है। आइए, शुभ मुहूर्त, महत्व एवं योग जानते हैं-

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कल्कि जयंती शुभ मुहूर्त Kalki Jayanti Shubh Muhurat

वैदिक पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 10 अगस्त को देर रात 03 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 11 अगस्त को सुबह 05 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगा। अत: 10 अगस्त को कल्कि जयंती मनाई जाएगी। साधक सुविधा अनुसार समय पर स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से भगवान कल्कि की पूजा-उपासना कर सकते हैं।

शुभ योग

कल्कि जयंती पर साध्य योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण दोपहर 02 बजकर 52 मिनट तक है। इसके बाद शुभ योग का संयोग बन रहा है। इस दिन रवि योग का भी निर्माण हो रहा है। कुल मिलाकर कहें तो कल्कि जयंती पर साध्य, शुभ एवं रवि योग का निर्माण हो रहा है। इन योग में भगवान कल्कि की पूजा करने से साधक को मनचाहा वर प्राप्त होगा। इसके साथ ही कल्कि जयंती पर शिववास योग भी बन रहा है।

धार्मिक महत्व

सनातन शास्त्र कल्कि पुराण, भविष्य पुराण, स्कंद पुराण में भगवान कल्कि के अवतरण का वर्णन है। इसके अलावा, प्रसिद्ध कवि जयदेव ने दशावतार में भगवान कल्कि का वर्णन इस प्रकार की है।

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम ।

धूमकेतुमिव किमपि करालम ।

केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ।।

इस श्लोक में जयदेव भगवान कल्कि की प्रशंसा करते हुए कहते हैं- हे जगदीश! हे मधूसूदन! आपने कल्किरूप धारण कर म्लेच्छों का विनाश कर धूमकेतु समान भयंकर कृपाण को धारण किया है। आपकी सदा ही जय हो।

पुराणों में भगवान कल्कि के अवतरण तिथि का भी वर्णन है। इनमें सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर भगवान कल्कि के अवतरण होने की पुष्टि की गई है। कई पुराण में पंचमी तिथि का भी उल्लेख है। इस तिथि पर भगवान कल्कि का अवतरण होगा। अवतरण तिथि पर हर वर्ष भगवान कल्कि की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। इस अवसर पर मंदिरों में भगवान कल्कि की विशेष पूजा की जाती है।

पंचांग

सूर्योदय - सुबह 06 बजकर 01 मिनट पर

सूर्यास्त - शाम 07 बजकर 03 मिनट पर

चन्द्रोदय- सुबह 10 बजकर 44 मिनट पर

चंद्रास्त- देर रात 10 बजकर 26 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 34 मिनट से 05 बजकर 17 मिनट तक

विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 42 मिनट से 03 बजकर 34 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त - शाम 07 बजकर 03 मिनट से 07 बजकर 25 मिनट तक

निशिता मुहूर्त - रात्रि 12 बजकर 10 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।