Kokila Vrat 2023: आज है कोकिला व्रत, जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि एवं महत्व
Kokila Vrat 2023 धर्म शास्त्रों में निहित है कि कालांतर में माता सती ने कोकिला व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य प्रताप से माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। कोकिला व्रत करने से न केवल शीघ्र शादी के योग बनते हैं बल्कि भगवान शिव के जैसे वर की प्राप्ति होती है। अतः महिलाएं कोकिला व्रत विधि विधान से करती हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 02 Jul 2023 10:23 AM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Kokila Vrat 2023: आज कोकिला व्रत है। यह पर्व हर वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो आषाढ़ पूर्णिमा 2 जुलाई को संध्याकाल में 8 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 3 जुलाई को 05 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। इस व्रत को विवाहित महिलाएं और अविवाहित लड़कियां करती हैं। कोकिला व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं, अविवाहित लड़कियों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा साधक पर बरसती है। आइए, कोकिला व्रत की पूजा विधि और महत्व जानते हैं-
महत्व
सनातन धर्म शास्त्रों में निहित है कि कालांतर में माता सती ने कोकिला व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य प्रताप से माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। अतः कोकिला व्रत करने से न केवल शीघ्र शादी के योग बनते हैं, बल्कि भगवान शिव के जैसे वर की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सुहाग और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अतः महिलाएं विधि विधान से कोकिला व्रत करती हैं।
पूजा विधि
कोकिला व्रत के दिन ब्रह्म बेला में उठकर घर की साफ-सफाई करें। नित्य कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें और आचमन कर व्रत संकल्प लें। अब जल में लाल रंग मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। तदोउपरांत, पूजा गृह में एक चौकी पर कपड़े बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। अब पंचोपचार कर भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा करें। पूजा में भगवान शिव को भांग, धतूरा, बेलपत्र, लाल पुष्प, केसर आदि चीजें अर्पित करें। आप भोग में मिठाई और मौसमी फल अर्पित कर सकती हैं। इस समय शिव चालीसा का पाठ और शिव पार्वती मंत्र का जाप करें। अंत में आरती-अर्चना कर इच्छा पूर्ति हेतु मनोकामना करें। दिन भर उपवास रखें। संध्याकाल में पूजा-आरती कर फलाहार करें। डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।