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Sarva Pitru Amavasya 2023: कब है सर्वपितृ अमावस्या? जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

Sarva Pitru Amavasya 2023 पंचांग के अनुसार अश्विन माह की अमावस्या तिथि 13 अक्टूबर को रात 09 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 14 अक्टूबर को रात 11 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन किसी समय पितरों को जलांजलि दे सकते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 27 Sep 2023 12:18 PM (IST)
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Sarva Pitru Amavasya 2023: कब है सर्वपितृ अमावस्या? जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Sarva Pitru Amavasya 2023: हर वर्ष अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन सर्वपिृत अमावस्या तिथि पड़ती है। तदनुसार, इस वर्ष 14 अक्टूबर को सर्वपिृत अमावस्या है। सनातन धर्म में सर्वपिृत अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन श्राद्ध पक्ष का समापन होता है। गरुड़ पुराण में निहित है कि अगर कोई व्यक्ति किसी कारणवश अपने पितरों को पितृ पक्ष के दौरान तर्पण करना भूल जाता है, तो सर्वपिृत अमावस्या के दिन जलांजलि कर सकता है। इस दिन पितरों की पूजा करने से भी व्यक्ति को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः सर्वपिृत अमावस्या पर पितरों का अवश्य ही तर्पण करना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि पितरों की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संताप भी दूर हो जाते हैं। आइए, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानते हैं-

यह भी पढ़ें- Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष के दौरान करें इन मंत्रों का जाप, सभी संकटों से मिलेगी निजात

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, अश्विन माह की अमावस्या तिथि 13 अक्टूबर को रात 09 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी और 14 अक्टूबर को रात 11 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन किसी समय पितरों को जलांजलि दे सकते हैं।

पूजा विधि

सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर प्रातः काल ब्रह्म बेला में उठें। इस समय दक्षिण दिशा में मुखकर पितरों को प्रणाम करें। साथ ही अनजाने में किए गए पितरों का अपमान के लिए क्षमा याचना करें। दैनिक कार्यों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर निकट में प्रवाहित नदी है, तो नदी में स्नान करें। इसी समय पितरों को जलांजलि या तिलांजलि दें। इसके लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम

गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इसके लिए जल पात्र में गंगाजल या सामान्य जल लें। अब इसमें यव यानी जौ और तिल मिलाकर दक्षिण दिशा में मुखकर पितरों को अर्पण दें। आप पितरों का नाम बदलकर पितृ विशेष को जलांजलि दे सकते हैं। इसी समय पितृ चालीसा का पाठ और मंत्रों का जाप करें। अगर कुल पंडित के सम्मुख तर्पण करना ज्यादा श्रेष्ठकर माना जाता है। इसके पश्चात, पितरों को भोजन दें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-दक्षिणा दें। इस विधि से पितरों की पूजा करने से व्यक्ति को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।